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स्या० क० टीका व हि. वि०
समाधिरिति च शुक्लध्यानस्यैव नामान्तरं परैः परिभाषितम् । तथाहि चतुर्विधस्तैः सम्प्रज्ञातसमाधिरुक्तः - 'सवितर्क : निर्वितर्क, सविचारः, निर्विचारथेति । (१) यदा स्थूलं महाभूतेन्द्रियात्मकषोडशविकाररूपं विषयमादाय पूर्वापरानुसन्धानेन शब्दार्थोल्ले खेन च भावना क्रियते सविकल्पवृत्तिरुपा तदा सवितर्कः समाधिः । (२) यदा त्वस्मिन्नेवाल म्बने शब्दार्थस्मृतिविये तच्छून्यत्वेन भावना प्रवर्त्तते निर्विकल्पकवृत्तिरूपा, तदा निर्वितर्कः समाधिः । (३) यदाऽन्तःकरणं सूक्ष्मविषयमालय देशकालधर्मावच्छेदेन सविकल्पकवृतिरूपा भावना प्रवर्त्तते तदा सविचारः समाधिः । (४) यदा चास्मिन्नेव विषये तदवच्छेदं दिना निर्विकल्पवृत्तिरूपा धर्मिमात्र भावना प्रवर्त्तते तदा निर्विचारः समाधिरिति ।
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रजस्तमो लेशानुविद्धान्तःकरणसत्त्वस्य भावनात्मको माध्यमानसच्चोद्रेकेण सान्नदः समाधिः, यत्र बद्धघृतयः प्रधानपुरुषतवान्तरादर्शिनो विदेहशब्देनोच्यन्ते । रजस्तमोलेशानभिभूतशुद्धसमालम्ब्य भावनात्मकश्चिच्छक्तरुकाव सभामात्रावशेषत्वेन सास्मित: समाधिः यत्र स्थिताः परं पुरुषं पश्यन्ति ।
बताया गया हैं, वह ठीक नहीं हैं, क्यों कि आत्मध्यान बीच में शुद्ध भात्म ज्ञान को अपेक्षा न रख कर स्वयं ही मोक्ष को सम्पन्न करता है । आत्मध्यान और आत्मज्ञान की उत्पति में कम नहीं होता, दोनों साथ ही उत्पन्न होते हैं। फिर भी निश्चयदृष्टि से आरमध्यान को आत्मज्ञान का कारण कहा जाता है। यह कथन ठीक उसी प्रकार है जिल प्रकार प्रदीप और प्रकाश के एक साथ उत्पन्न होने पर भी प्रदीप को प्रकाश का कारण कहा जाता है । इस आशय से योगशास्त्र में कलिकाल सर्वक्ष श्री हेमचन्द्रसूरि ने यह बात कही हैं कि- मोक्ष कर्मों के क्षय से होता है, कर्मों का क्षय आत्मज्ञान से होना है, आत्मज्ञान आत्मध्यान से होता है। अतः आत्मध्यान ही आत्मा के हित का साधक है"। व्याख्याकार का कहना है कि जैन दर्शन के शुक्लध्यान को ही पातञ्जल ने समाधिनाम से अभिष्ठित किया है तथा सम्मात समाधि के बार मेव बताये हैं - सवितर्क, निर्वितर्क, सविचार और निर्विचार |
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समस्त जड़ पदार्थों को दो श्रेणियाँ है- स्थूल और सूक्ष्म । पचमहाभूत पृथ्वी, जल, तेज वायु और आकाश, पाँच कर्मेन्द्रियां वाकू, पाणि, पाद, पायु, (मलेन्द्रियं ) और उपस्थ (मूत्रेन्द्रिय), पां ज्ञानेन्द्रियां प्राण, रसना, वक्षु स्व और धोत्र, तथा एक उभयेन्द्रिय-मन; ये सोलह स्थूल विषय हैं। प्रकृति, महत्, अहङ्कार तथा पक्ष तन्मात्रायें गन्ध, रस, रूप, स्पर्श और शब्द ये आठ सूक्ष्म विषय हैं । सवितर्क और निर्वितर्फ समाधि के विषय हैं स्थूल पदार्थ तथा सविचार और निर्विचार समाधि के विषय हैं सूक्ष्म पदार्थ )
सवितर्क - उत्त सोलह स्थूल पदार्थों में जब वृत्तिरूप ऐसी भावना की जाती है, जिसमें उस १ दृष्टव्य-पात० १ पाद के ४२ से ४६ तक के सूत्रों पर व्यासभाष्य ।
किसी एक के विषय में सfooteविषय के पूर्व अपर-कारण- कार्यभूत