Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 362
________________ स्पा क• ढोका पहि. वि. पवारफलमेवार भृतम्'- बीकात काय पौवाकाशम् । इत्थं तत्वविलोमे थत्तथाऽज्ञानविवर्धनम् ॥११॥ लौकायनमः-नास्तिकदर्शनम्, प्राज्ञैः मेक्षिभिः, पापौषस्य=फिलफर्मसमूहस्य, कारण सेयम् । कुता ! इत्यार अत्यामादेतोः इत्यम्-उक्तप्रकारेण, तसविलोमम्= यथार्यहानप्रतिक्लम, तश्रा, अज्ञानविवर्धनम्=क्लिष्टयासनासन्ततिहेतुः ॥११०।।. अत्र द्रष्याऽसत्यत्वमपि नास्ति, इति परोक्तसदुपसिप्रकारदूषण वाले नाहमूलम् - मुन्द्रयतारमायेदं च किल नस्पतिः । पदोऽपि पक्तिशून्यं यन्नेत्यमिन्यः प्रतायने ॥१११॥ इन्द्रातारणाय-प्रदानवव्यापादनाय हिंसादिभीतस्येन्द्रम्य धर्माधभाव भ्रममाधाय लोकमुखाय प्रेग्णाय, इदं -लोकायतमतं, 'किल' गति सत्ये, स्पति: तुरगुरु, पर बदोऽपि एतदपि यवन, युक्तिन्त्रम् अविचारितरमणीयम् । कुतः इत्याह 'यत् = यस्मात्, इत्यम् अनेन वृरस्पन्युक्तप्रकारेण, इन्द्रो न प्रतायते, दिव्यदृष्टित्वात् तस्येति भावः ॥११॥ प्रकार भभूत आत्मा में भूतं मे का मयोग होना सम्भव है। इसी प्रकार से पानीपत के सेवन में गभून शान का उपचय और प्रयपान से अपमय होता है, उसी प्रकार विचित्र कर्मों के नम्पर्क से अमूल मामा का एपचय और अपाय भी मान्य हो सकता है। किसी प्रतिफल नर्कका मापात न होने से कर्म की सिदि भी निर्याध माता मध्यस्व मालोषकों से प्रशंसनीय इस शापवान को दी विवरजन श्रेष्ठ पर्व प्रामाणिकपार कहते है ॥१०॥ इस १५. वो कारिका में यह बताया गया है कि पूर्व कारिका में सवेनमेष रस प्रकार जो 'पष' ज्ञान का प्रयोग किया गया है, उस का फल क्या है? सूक्ष्म बधि से पस्न का विकार करने वाले विद्वानों को यह समझना चाहिये कि पाक का मत पाचसमूह-क्लिष्कर्मों की राशि का कारण है, क्योंकि उस रीति से पह पथार्थहान का विरोधी और अमान शिलपालनामों की परम्परा का षर्मक है ॥१०॥ १११ षो कारिका में इस फन का अपमान किया गया है कि शाक मत जिस कप में भून बस रूप में माय ने तो असाय नहीं कि द्रव्यरष्टि से भी भस्मम ही क्योंकि उस का प्रादुर्भाव तम्य के प्रतिपादनार्थ होकर एक विशेष पोश्य से हुभा है।' कारिका का भी इस प्रकार है

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