Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

View full book text
Previous | Next

Page 351
________________ शास्त्रपालमुच्चय-स्तक १ ग्लो. १०२. सन-आवारकत्वेनाभिमतं मियान्तरनिबन्धनम् अनुभक्रियानिमिचकपापं गिन्नमेव= अत्यतिरिक्तमेव अस्तु' इति चेत् ? एका अशुभक्रियाजन्यपापवत इमानेया नन्यगबिदित. क्रिपानिमित्त पुण्यं किमितिकृतो हेतो। नेष्यते ? पकभावेनान्यथासिद्धावविनिगमादिति भावः ||१०१॥ पासनैवाष्टमिति द्वितीय पक्ष निराकर्तुमाह-- मुलम्-वासनाऽप्यन्यसम्बन्ध विना नैवोपपद्यते । पुष्पादिगन्धयकश्ये तिलादी नेभ्यते यतः ॥१२॥ वासनाऽप्यन्यसम्बन बिनावास्यातिरिक्रयोग विना, नैत्रोपपद्यते । कुत: ? इत्याह पुष्पादिगन्धर्वकल्ये यतस्सिलादो रासना नेष्यते । एवं च वासना वास्यातिरिक्त सम्बन्ध अन्येति नियमः सिद्धः ॥१२॥ ततः किम् ? इल्या-. मुरम्-जोधमाप्रातरि तयासक किञ्चिविष्यताम् । मुख्यं तदेव : फर्ग न युक्ता वासनाऽन्यथा ॥१३॥ भागुमक्रियाओं से उत्पन्न होता है, किन्तु शास्त्रहित कियाधों से भी किसी वस्तु का जन्म होता है, यह मानने की आवश्यता नहीं है, क्योंकि उन क्रिया को से कशक्ति को मात करने वाले पापकर्म की नियुक्ति होने पर कर्वशक्ति से ही उम मियाओं को फल सम्पन्न हो सकता '-किन्तु यह कथन कहो क्योंकि जिस प्रकार भशुभ कियाओं से पाप का जन्म होता है उसी प्रकार शुभ क्रियाओं से पुण्य का जन्म म मानने में कोई युक्ति नहीं है। यह कहना कि-कहगत शक्ति के आवरणार्थ अशुभमियाजन्य पाप की सत्ता मानना तो पायायक है, शतः शुभ क्रियाओं से पाप की निवृत्ति होने पर उन कियामों के फल की निष्पत्ति सम्भव होने से पागभाव द्वारा पुण्य का अस्तित्व अन्यथा लिक हो जाता है- नई हैं, फोंकि जैसे अशुभ क्रियाओं से पाप का अम और शुभ कियामों से उसकी निवृत्ति मानकर पापामात्र से पुण्य को अपमास्सिाह किया जा सकता है, इसमें कोई निगमक (-पक्षमात्र का समर्थक) युक्ति नहीं है जिससे पाणामाय से पुण सन्यासित हो किन्तु पुण्याभाव से पाप अभ्यासिक न हो ||१०|| कारिका (१०२) में 'पासना ही पडघट है' इस दूसरे पक्ष का भाकिया गया है घासनीय वस्तु से अतिरिक्त पस्तु के सम्ध के बिना यासना भी नही डापन्न हो सकती, कोपि पुष्प आदि के गाय के अभाष में नेल में वासना नहीं होती, अतः यह नियम निविषाद सिज' है कि 'वासना याममाय से भिन्न वस्तु के सम्पन्ध से ही पत्पन्न होती है.२| कारिका १०३ में अफल निग्र से प्रस्तुत विषय पर क्या प्रभाव सुभा, इस बात का स्पीकरण किया गया है. कारिका का अर्थ इस प्रकार है

Loading...

Page Navigation
1 ... 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371