Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 353
________________ ३१० .... शास्त्रवातासमुच्चय-स्तषक प्रलो. १०५ मुलम्-बोधमारस्थ तसावे मासि ज्ञानमवासितम् । ततोऽमुक्तिः सदैव स्यात् वैशिष्टयं केवलस्य न ॥१०॥ बोधमात्रस्य अविशिष्टज्ञानस्य, तावे वासनावे 'अङ्गीक्रियमाणे' इति शेषः, ज्ञानमयासितं नास्ति, सर्वस्यैव शानस्थ बासनारूपत्वात् । ततः सदय वासितज्ञानसम्वादमुक्तिः स्यात् । अष विशिष्ट वानं वासना स्वीकरिष्यते, इत्यत्राइ फेवळस्यअषिविज्ञानस्य चैशिष्टय न, विशेषकस्वीकारे च उक्तवत् तदेवाजमिति भावः । प्रय पोकतनवानप्रवाशरूपा वासना, मतो नानुपसिरिति चेत् ! न, क्षणपरम्परातिरिक्तसन्तानस्वीकारे द्रव्याभ्युपगमप्रसङ्गाद, अन्यथा चासिप्रसमाऽपरिधारादिति म्फुटीभविष्यत्यने ॥१०॥ उपसहरन्नाहसकम् -- एवं शल्यादिपक्षोऽयं घटते नोपपत्तितः । बन्धाद् न्यूनातिरिक्त तावानुपातितः । १०५|| [ज्ञानमात्ररूपवासनापक्ष में मोशामाव की भापत्ति ज्ञानमात्र समज्ञान को वासनारूप मानने पर अघासित-पासतामुक्त वा पासमा भिम्म माम फोई न होगा अतः घासनात्मक खान काही सवत्रा समाप होने से मोक्ष के भभाष का मसा होगा, क्योंकि मिर्यासन बान या मान की निर्वासनता ही मोन, मो हानमात्र को वासनात्मक मानने पर सम्भय नहीं है । 'शानमात्र वासना नहीं किन्तु विशिरमानमात्र वासना है'-यह कथन भी ठीक नहीं है क्योंकि किसी विशेषक का अस्तित्व माने विना विशिष्ट ज्ञान एवं विशिष्टयान में कोई लक्षण्य ही नही हो सकना और यदि शान का कोई विशेष माना जायगा तो उस विशेषक केही मापकप में मान्य होने से अहट के अस्तिस्य का निराकरण न हो सकेगा । "क्षणिक सानो का प्रयाही पासना है और इस प्रघाह का परम ही मोक्ष पेला मानने अनुपपत्ति नहीं हो सकती " यह कथन भी संगत नही हो सकता, क्योंकि 'उत्तरभावी काम से ज्ञान का घासिम होना या पूर्थशान से उत्तर. शाम का वालिश होना-पेसा स्योकार करने पर बुध से भिन्न व्यक्ति के पान से युद्ध के बान की बासमा छोम लगेगी क्योंकि मोनों के हो राम प्रषमाम हैं और दोनों में पूर्वोत्तरभाष है।'पक सम्तानगामो शामों का प्रवाह घानना है, खुज और घुझेनर के नाम मिन्नसम्तालगामी शतः पोंक दोन नहीं हो सकता'-यह कथन भी समीचीन नहीं हो सकता, क्योंकि सातास भणी-झानात्मकक्षणों को परम्परा से भिन्न मानने पर स्थायी के अस्तित्व का प्रसा होगा मोर क्षणपरम्परा को छी सन्तान मानने पर समस्तक्षणों को भी एक परम्परा होने से अश्रया मानक्षणी से भिन्न किसी परम्पराका अस्तित्व न होने से पूर्वांत मनिप्रसाद का परिवार न हो सकेगा ॥१४॥ - [अहल का शक्ति- वासनारूपाय अघाटन है-उपसंहार] इम कारिका (१.५) में पूर्वक भूर्मा का उपहार किया गया है'शकि या वासना दी पहा है उससे भिन्न क्रियाजन्य भरष्ठ की सत्ता में

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