Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 336
________________ ० क० ठीका मषि कर्तृत्वादिक चानित्यस्य नोपपद्यते, कार्यसमये नेतो हेतोः कार्याननकरशास् अन्य पिकात्पत्तेः प्रसङ्गात् । इति न त्वदुक्तं मन एवात्मा, किन्त्वन्य पत्र विज्ञानघनः शाश्रत इति सिद्धम् ॥ २९०॥ मूळम् सात्मत्वेनाऽविशिष्टस्य वेचियं तस्य यशात् । नरादिरूपं तश्चिश्रम कर्मतिम् ॥९१॥ १९३ = नित्यत्वे cres पिम् ? इत्यत आह- आत्मत्येनाऽविशिष्टस्य = एकजातीमस् तस्य = आत्मनः, नरादिरूपं वैचित्र्यं कार्यवैचित्र्यनिवडकविचित्रशक्तिकलित, कर्मसंज्ञित = कर्मापरनामकम् अ सिध्यति । न च नरत्वादिवैचित्र्यं नरगत्याद्यर्जविभवोपपद्यतां वि न्तव्यापास्व्याप्यत्वावधारणात् । तदिदमुक्तं न्यायाचार्यैरपि "चिरध्वस्तं फलाथा, न कर्मा प्राण, मन आदि । किसी भी नित्य पदार्थ को भात्मा नहीं माना जा सकता, क्योंकि आत्मा के कर्तृत्व आदि उक्त लक्षण अतिश्य पदार्थ में नहीं उत्पन्न हो सकते, क्योंकि को कार्य के समय स्वयं नष्ट हो जायगा वह कार्य का कारण नहीं हो सकता। यदि जो वस्तु जिस समय विद्यमान नहीं रहती उस समय भी उस से कार्य का जन्म माना जाय तब उस वस्तु के दूसरे क्षण में जैसे उनके न रहने पर मी उस से कार्य होगा उसी प्रकार उस तु पूर्व तथा उसके माथ के विरकाल पाद भी उस से कार्य की आपत्ति होगी। अतः वशिलम्मत मन को आत्मा नहीं माना जा सकता। मात्मा सो वही हो सकता है जो विद्यामघन, स्थिर, नित्य तथा कर्मकर्तु कर्मफलभोक्तृत्वभाविक मास्मलक्षणों से सम्पन्न हो ॥१०॥ [आत्मवचयप्रयोजक स्पष्ट की उपति ] मन होता है कि- "जब सभी भारमा समानरूप से नित्य है, उन में कोई सहज नहीं है, तब में कोई मनुष्य कोई पशु और कोई पक्षी कैसे होता है, यह विचित्रता उन में कैसे भा जाती दे ।" प्रस्तुत कारिका १२ इसी प्रश्न का उत्तर देने को निर्मित हुई है, जिसका अर्थ इस प्रकार है- यह ठीक है कि सभी आत्मा समान रूप से मिथ्य है, मात्मस्वरूप की मात्मत्वासि की दृष्टि से उन में कोई भेद नहीं है, किसी प्रकार का सहज वैविध्य भी उन में नहीं ई. फिर भी मनुष्य, पशु, पक्षी भावि के रूप में उन में विचित्रता होती है। यह विधिसाजिस कारण से होती है उस का नाम है अछ, जिसे कर्म भी कहा जाता है, इस भर में विचित्र कार्यों को उत्पन्न करने वाली विचित्र शक्ति भी होती है, अतः उसके द्वारा समानरूपवाले विभिन्न मात्माओं में उक्त वैषिष का होना नितान्त संगत है ।

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