Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 319
________________ E शास्त्रधाखसि मुरुमय- स्तबक ग्लो० ८४ अन्य तानयच्छेदन वस्त्र प्रत्यक्षत्वात् तच्च च स्वाच्छिनकनाज्ञानोपहिवर्षा विश्वविशिष्टज्ञानजभ्यतावच्छेदकमिन्नत्वम् तता प्रत्यक्षेषशेऽप्रत्यक्षत्वं क्षित्रियकल्स् वृमणराम तावदिति बोध्यम् । कोई ज्ञान आन्या प्रत्यक्ष एष तु होने से प्रत्यक्ष होना है । अनुमिति व्यामिशन से उर्माि माशान से, शाब्दबोध पश्शान से स्मरण अनुभवमान में जन्म होने के कारण प्रत्यक्षरूपता नाम कन्तु जन्य अथवा अत्मा के शक्तिविशेष से अन्यज्ञान किसी ज्ञान से जय न दानं क कार प्रत्यक्षात्मक होगा में मद्द किया जा सकता। आशय यह | अतः ज्ञान की प्रत्यक्षस्वरूपता प्रस्वत के अधीन करू शानाजन्य या पान अगर जानव एक सयत्व के धान है अतः स्थय में तानियाभाव है । शिवप्रत्यक्ष में आया की पतका परिहार | इस संदर्भ में यह शंका दो कि-"यदि बावजस्तातपच्छेदक तद्विषयक को समरूप माना जायेगा तब किसी अंश में अलकिकशोर ि में खांकित भादश मे प्रत्यक्षात्मक न हो सकेगा, क्योंकि वह प्रत्य जिस मंथ में अलाफिक होगा उस जश में राज्य दोने से उस छान में रहनेवाला किविषयी ज्ञानजनका जायगा से व िवायुमान यह बायु में अलोकिक हाने से छा यह बानुज्ञान व जन्यः स जानने वाला घायु विषय जैसे शोतजन्मनसा प्रकार इसमें रहने चानुपप्रत्यक्ष अशोक यच्च भी ज्ञान की जन्यताको बाधक है। आशय यह है कि एक कारण से कार्य - अम्मीने से समय का कार्य का जयक मानना होगा, सामग्री के मांतर भाने बाले पदाथ स्वतन्त्ररूप से कारण होंगे, फळतः 'मान्य यदि नाथ इन्द्रियां से अन्य होगा गांर उस जन्यता का होगा, तथ अथ उस अत्यक्षदश्य रुप घाणमामा का अन्ताक होगा तो आयुशन का संग अन उपलक्ष में ज्ञान जन्यनामयमें कत हो । और वायुशान से घटित सामग्री वायुकारक विशेष प्रत्यक्षत्व एक पक्षिविषयकत्व न दान हो सकती है, की जान वह अन्य कारण से भो द्राणखान का जन्यत से में बांध यह कि अनुमित होता है और समाज की विषय में वह्निमान्' इस प्रकार की पति होगा और घर धूपराम का जन्याकरान से ज्ञानजन्यता का अन प्रत्यक्ष मं ज्ञानजस्वराच्छेविन ढोने से रहन चालक एक 1 क न की सकेगा, इसलिये वह डिश में प्रत्यक्षात्मक

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