Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

View full book text
Previous | Next

Page 325
________________ २८२ २८२.... शास्त्रवानीलमुषय-सबक लोक मूलम् - न च बुद्धिविशेषोऽयमई कारः प्रकल्पते । दानादिबुमिकामेऽपि तथाऽहकारवेदनात् ॥८॥ न चार्य = प्रकृतबुद्धिविषयोऽहंकारः, बुदिविशेषः अर्थविनिर्मुक्तताद्धयाकाररूपा, प्रकलप्यते, कुतः ! इत्याह-दानादिदिकावेऽपि नथा--'अहं ददामि इत्यादि प्रतिनियतोल्लेखेन अहंकारवेदनात् 'अहम्' इत्यनुभवात् । वासनामभवत्वेऽन्यवासनाया भन्याकाराजनकल्वेन दानादिवासनाया अहंकारबुश्यनुपपसेरिल्यानया । ननु युगपदुभयवासनाप्रपोधादुमयाफारोपपत्तिरिति चेत् ! कथं तकारवासना शमादिवासनाप्रयोधनियतकालीनप्रबोधा, न तु नीलादिवासना-इति वाच्यम् । 'स्वभावादिति चेन, तया सति तेन वासनाश भयन्पशासिद्धे । 'नत्कालभ्य नोलादिचासनानुयोधकस्वादि'सि चेन्न, सत्काल पयान्येषां तदुद्गेधात् । 'तदीयतद्वासनोद्घोचे तत्कालीन हेनुरिति चेद् ! गतं त वासनया, तत्कालेनैव सदाकारप्रति नियमान् । तस्मात् तत्तदर्थसन्निधानेनैव क्षयोपन्नमरूपा वसम्मान जननी वासना प्रबोध्यते, इत्यहकारस्पार्थविषयन्वमकामेनापि प्रतिपत्तव्यम् । पस्तु को निाय आरमा के रूप में स्वीकारना अनुचित है।'' इस शंका का समाधान करने के लिए ही मूलप्रन्धकार ने "न युधिधिशेषोऽयाहकार" स्यादि कारिका की रचना की है, जिसका अर्थ इस प्रकार है प्रकार को थनिरपेक्षतामाकाग्युमिचिशेषरूप नहीं माना जा सकता, क्योंकि थानादि की प्रतीति के समय भो 'अहं शामिन्मैं वान करता है। इस रूप में परिकार का अनुभव होता है। इस अनुभव को दानाकार बावना से पा सकार बासनाने उमान्न महो माना NT सकता कि मानाकावासमा से उत्पन्न होने पर यह प्राइमा कार नहीं हो सकता, और पदमाकार. वासना से उत्पन्न होने पर वह हासकार नहीं हो सकता, क्योंकि अनि प्रसंग के भय से पकाकार पासना को अम्पाकार भनु पय का कारण नहीं माना जा सकता। मामाकार और दानाकार योनौ घालाओं का एक साप उद्धोधन होने पर दोनों थाकारों से युक्त है पदामि' इस शान की उपपति हो सकती है' यह कहना उचित नहा हो सकता क्योंकि पानाकार घासना के साथ ही बहुमाकार वासना के उद्योधन का कोई नियामक न होने से कभी नोलाकार यामना के साथ भी अहमाकार पासमा का उपयोधम हो जाने पर व मीदः' इस प्रकार के मनुमय की भी भापति हो सकेगी। 'अइमाकार पासना का यह स्वभाव है कि यह वानाकार पासमा के साथ उद्बुद्ध होती है, नीलाकार बासना के साथ ही प्रानुस होती'- करना भी युक्तिसंगस नहीं हो सकता, क्योंकि स्वभाववाद को स्वीकार करने पर स्वभाव से ही नियः ताकार शानों की व्यवस्था हो जाने से बासना अन्यथासित हो मायगी । 'मामाकार पापना जिस काल में उखुश होती है, यह काल पानाकार वासना काही प्रमोधक होता है. नीलाकार पासमा का प्रयोजक नही होता'-यह कहना मी

Loading...

Page Navigation
1 ... 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371