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शास्यासोसमुभय-सागक र लोक० ८३ व्यञ्जयति । अतः उक्तसाम्यान, तहत् सत्यघटप्रत्ययवत् , म भो 'अहं नामे इत्यादिप्रत्ययः, मुख्यः सयवहारजनका सम्यक् प्रत्यक्ष प्रल्पालप्रमाणरूप ण्यताम् अङ्गीक्रियताम् ॥८२||
ननु 'भई मामे स्पादिनस्पयस्य न प्रान्तत्त्वम्, 'आई गुरु' ति प्रत्ययस्य ष भ्रान्तत्वम्, इत्यत्र किं विनिगमकम् ? इत्यत माह -
मूलम्-- गुर्वा में समुश्त्यिादौ मेदप्रत्ययदर्शनात् ।
भ्रान्त साऽभिमतस्यैवास्य युक्ता नेतरस्य तु ||८३ | मुवाँ गुरुत्वासी, मे-अम, यादौ प्रयोः दादा समस्येप : स्वया बाधत्वेनाङ्गीकृतस्यैव, अस्य 'रई गुरुः' इतिप्रत्ययस्प, भ्रान्सता युक्ता, तु कर सत्य घटप्रत्यथ का मन होने से पनु मादि में प्रमाणरय की उपपत्ति होती है, जसी प्रकार - गुरुः' इस गमत्य अप्रत्यग को छोटकर 'मह माने त्यादि सत्य मह प्रत्यय का जनक होने से अप्रत्यग के उपायक उपयोग में भी प्रमाणाप की उपास की जा सकती है, क्योंकि कुष्ट कारण पर्व अपुष्ट कारण से उत्पन्न होने के नाने असत्य भ्रम और साय अमाप में ज्ञान का विम सर्वसम्मन है, इसलिये उति से मारमा में प्रमाणप्राशाब सम्भव होने से बान्मा में भलीकन्ध का प्रसंग नहीं हो सकता ।
उपर्युक्त रोति से प्रत्यय में घटप्रत्यय का साम्य होने से सस्यवस-प्रय के समान 'मह जाने त्यातिप्रत्यय भी अपने विषय में साध्यवहार का जनक, अर्थात जैसे घटप्रत्यय थे यथार्थ होने से उसके विषय घर में घट सम्' या व्यवहार होता है, उसी प्रकार 'महं जाने' इत्यादि मत्यप के भी यथार्थ होने से इस प्रत्यय के विषय मात्मा में मारमा सम्' इस प्रकार का व्यवहार हो सकता है। इस लिये पाई जाने' इत्यादि रूप में होने वाले म प्रत्यय को सम्यक सम्यक्ष पमाणभूतप्रत्यक्षरूप भागने में कोई बाधा नाही, से प्रसारमा प्रत्यक्ष के रूप में स्पीकत किया जा सकता है ।।८२॥
'भई जाने' स्यादिप्रत्यय अमरूप नहीं है और 'मई मुमः यह प्रत्यय अमरूप, पस में क्या विनिगमको कारिका ८३ से इस प्रश्न का लत्तर दिया गया है
['अहं गुरु: हम ज्ञान की प्रतिरूपता में मुक्ति 'मम तनुः गुवी-मेग शरीर मुमत्व का आश्रय है' इस प्रयोग में मनमानी अस्मद् राम के उतर. 'मम' शबघटक पाठीविभनि से गुरुत्वाय शरीर में माहमर्ष भात्माका मेस्सा है। अतः शारीरभिन्न भात्मा के बाघकरूप में मनामवादी द्वारा प्रस्तुत किये गये भर गुरुः' इस प्रत्यय को दी भ्रमरूपता उचित है, क्योंकि यह प्रत्यय गुरुत्वाश्रय में हमर्थ के अमेव को विषय करने से गुरुत्वाश्रय में आम के मेन को विषय करने पाले 'मम तनुः गुर्थी' इस प्रत्यय ले बाधित है । 'मह' नामे' इत्यादिमत्यपों को भ्रमकाता को मानी जा सकती, क्योंकि ये प्रत्यय किसी विपरीतविषयकप्रत्यय से माभित नहीं है।