Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 290
________________ स्या का टोबा fo पुनः, ताम्प या जाने इस्यादिप्रत्ययस्य, तत्र बाध काऽनवतारात् । 'भत्र पष्टया पद्यपि सम्माचमर्थः, तथापि तस्या भेदनियतत्वेन शगेरेजस्वयमेवस्य पामपोषोमरमाक्षेपण थत्वेन ममिन्नविषेनोक्तायवेव पधिकरण प्रकारचलभपाश्रमस्वग्रहः' इति वदन्ति । 'भेदविशिष्टः सम्पन्ध एव पाचर्थ, 'राहो। भिर' इत्यादौ तु धाधाद भेदशिस्त्यज्यते', इत्यन्ये । पर्याप 'ममात्मा' इत्यावापि पाटीप्रगोगो रज्यते, सथापि गुरुत्वादावेवाइम्स्यव्पधिकरणत्वम्, अन्यत्र स्लुप्तत्वात, इदन्त्वसंवलिताप, न हुमानादावित्यत्र नात्परम् ।।८३॥ पाविभक्ति का अर्थ केवलसम्बन्ध या मेदांवशिष्ट सम्बन्ध] सम्म सन्दर्भ में यह मात्रम्य कि 'मम ननुः गुर्षी इस प्रयोग में 'मम' शायघटक पक्षी का अर्थ केवल गमवाय है पनी के अर्थ में एक पाये नही है। मनः पठी से शरीर में शामर्थ के मेड़ को पनीत नहीं हो सकता किन्तु 'पा जिस सम्बन्ध का बोधन करती है यह सम्बन भेनियत है। अतः पो से गुरुवानय शरीर में महम के सम्बन्ध का ज्ञान होने के बाद आनुमान द्वारा गुरुवाश्रय में अहमर्थ के मेव का शाप होता है | अनुमाम का भाकार यह होता है, 'गुरुत्यवती तनुः सहमभिगना, अामर्ष सम्परिचयात् सन्तश्री गपुस्ता घन् । इस कानमामिक मेरमशीनि से गुरुत्व में अहमयातनवृत्तियरुप अन्त्वयधिकरण का ज्ञान होने से मन गुरुर' इल प्रतीति में अहम्पयधिरजगुरुयप्रकारका का बान होता है । यह हमवण्यधिकरणमुकत्य प्रकारकत्व दो अहमर्थ में मयप्रकार कश्रमाय है। इस प्रकार उक्त पति से मप सतुः गु:' इस प्रयोग के द्वारा 'k गुवः' इस प्रनीति में अमन्य का राम सम्पम्म होता है। किसो प्रतानि में अन्यमनोति द्वारा प्रमत्य का ज्ञान होगा की भाग्य प्रतीति से उस प्रतीति का पाथ कहा जाना है बाधित प्रतीति दी भ्रान्त प्रतीनि मानो जाती है। ___ अन्य लोगों का तो यह कहना है कि ' मे गसम्बन्ध' हो षष्ठी का अर्थ है, मनः बड़ी से मेर का शास्दयोध ही हो जाता है। राहो शिरः' में मेव का पाय होने से सम्माध मात्र में पानी की लक्षणा हो जाती है। यति मात्माशि पाचक गारमाशद के सन्निधान में मकान में उत्तर षष्ठी का प्रयोग कर मलबत्ता 'मम धात्माम प्रकार का प्रयोग किया जाता है। मिर भी इस प्रयोग द्वारा मारमत्व को बाहर का व्यधिकरण नहीं माना जाना, किन्नु 'मन तनुः गुर्श स प्रयोग के द्वारा गुरुम्ब को भारमत्व का ग्यधिकरण माना जाता है। पर इस लिये कि गुरुत्व प्रामभन्नशरीर आदि में सिख है, ना पद गुरु' पविण्यवहार के अनुरोध से गुरुत्वावि पायधर्म इतन्त्र का समानाधिकरण , पर मामत्व महमर्थ से भिग्न में न तो सिखनी है, और इवत्व का समानाधिकरण है |

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