Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 17
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ संवच्छरेण होही अभिनिक्खमणं तु ज़िणवरिंदाणं। तो अत्थसंपयाणं पवत्तई पुव्वसूरम्मि . // 119 // एगा हिरनकोडी अद्वैव अणूणगा सयसहस्सा। ... सूरोदयमाईयं दिज्जइ जा पायरासाओ // 120 // वरवरिया घोसिज्जइ किमिच्छियं दिज्जए बहुविहीयं / सुरअसुरदेवदाणवनरिंदमहियाण निक्खमणे // 121 // तिन्नेव य कोडिसया अट्ठासीयं च हुंति कोडीओ। असियं च सयसहस्सं एयं संवच्छरे दिन्नं || 122 // अद्वैव सागराइं परमाउं हुंति सव्वदेवाणं / एगावयारिणो खलु देवा लोगंतिया नेया // 123 // सारस्सय 1 माइच्चा 2 वण्ही 3 वरुणा य 4 गद्दतोया 5 य / तुसिया 6 अव्वाबाहा 7 अग्गिच्चा 8 चेव द्धिा य 9 // 124 // एए देवनिकाया भयवं बोर्हिति जिणवरिंदं तु / सव्वजगजीवहियं भयवं! तित्थं पवत्तेहि // 125 / / एगो भयवं वीरो पासो मल्ली य तिहिं तिहिं सएहि / भयवं पि वासुपुज्जो छहिं पुरिससएहि निक्खंतो // 126 // उग्गाणं भोगाणं राइन्नाणं च खत्तियाणं च / चउहिं सहस्सेहिं उसभो सेसा उ सहस्सपरिवारा // 127 / / न वि लेइ जिणा पिंछी न वि कुंडी वक्कलं च कडसारं / दिक्खा धम्मकहाओ न करेंति य जाव छउमत्था . // 128 // सिबिगत्ति-सुदंसणा 1 सुप्पभा 2 सिद्धत्था 3 अभयकरा 4 निव्वुइकरा 5 मणोहरा 6 मणोरमा 7 सूरप्पहा 8 सुकप्पहा 9 विमलप्पहा 10 पुहवी 11 देवदिन्ना 12 सागरदत्ता 13 नागदत्ता 14 234

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