Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 17
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ अट्ठावयम्मि भरहाहिवेण सिरिआइनाहविरहम्मि। ठाविय जिणपडिमाओ विहि त्ति पूयापअं ठवणा // 618 / बोहेऊणं संपइरन्ना पच्चंतियदेसरायाणो। संमत्तं गाहेउं विसज्जिया जिणहरे कासा // 619 / एयं निसाहगंथे भणियं नाऊण भुवणनाहाणं / कारिज्ज मंदिराई विहिणा अहिगारिणो तत्तो . : // 620 / अहिगारिणा इमं खलु कारेयव्वं विवज्जिए दोसे। आणाभंगाउ च्चिय धम्मो आणाइ पडिबद्धो . // 621 / अहिगारिणो गिहत्थो सुहसयणो वित्तसंजुओ कुलजो। अक्खुद्दो धिइबलिओ मइमं तह धम्मरागी य // 622 / जिणभवणं जिणबिबट्ठावणरपूया३ य सुत्तओ विहिणा। दव्वत्थओ त्ति नेयं भावत्थयकारणत्तेणं .. // 623 / मुत्तूणं भावथयं जो दव्वथए पयट्टए मूढो / सो साहू वत्तव्वो गोयम ! अजओ अविरओ य // 624 // उक्कोसं दव्वथयं आराहिय जाइ अच्चुयं जाव। भावत्थएण पावइ अंतमुहुत्तेण निव्वाणं // 625 // अपएसम्मि निवुड्डी कारवणे जिणघरस्स नो पूआ। साहूणमणणुवाओ किरियानासो य अववाए // 626 // न य किंचि जत्थ सल्लं नरतिरियाणं च अट्ठिमाईणि / जलथलगया य जा सा सुद्धा भूमी भवे एसा // 627 // कट्ठाई वि दलं इह सुद्धं जं देवयाउववणाओ। . नो अविहिणोवणीयं सयं च कारावियं जं नो // 628 // रायाईणं इह सम्मएण नाओवणीयदव्वेणं। भावेणं कायव्वं अपत्तिरहियं च जयणाए / // 629 // 298

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