Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 17
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 308
________________ // 862 // // 863 // गहिऊण य मुक्काई जम्मणमरणेसु जाई देहाई / पावेसु पसत्ताई तिविहेण य ताइं चत्ताई अहिगरणाई जाई हलऊखलसत्थजंतमाईणि / करणाईहि.कयाई वोसिरियाई मए ताई जह बालो जंपंतो कज्जमकज्जं च उज्जुयं भणइ। तं तह आलोइज्जा मायामयविप्पमुक्को उ गारवपंकनिबुड्डा अइयारं जे गुरूण न कहंति। . दंसणनाणचरित्ते ससल्लमरणं भवे तेसिं एयं ससल्लमरणं मरिऊण महब्भए तह दुरंते / सुइरं भमंति जीवा दीहं संसारकंतारं // 864 // // 865 // // 866 // इक्कं पंडियमरणं छिंदइ जाईसयाइं बहुयाइं / इक्कं पि बालमरणं कुणइ अणंताई दुक्खाइं . // 867 // धीरेण वि मरियव्वं काउरिसेण वि अवस्स मरियव्वं / तम्हा अवस्समरणे वरं खुधीरत्तणे मरिउं // 868 // चतुर्विधश्रीश्रमणसंघजिनबिंबजिनचैत्यपुस्तकरूपायां सप्तक्षेत्र्य धनव्ययं कार्यते, तदनंतरं सम्यक्त्वदंडकमुच्चार्यते नमस्कारत्रयपूर्वकंअहन्नं भंते ! तुम्हाणं समीवे मिच्छत्ताओ पडिक्कमामि सम्मत्त उवसंपज्जामि, तंजहा-दव्वओ खित्तओ कालओ भावओ, दव्वओ ण मिच्छत्तकारणाइं परि० सम्मत्त उवसंपज्जामि, नो मे कप्पइ अज्जप्पभिई अन्नउत्थिए वा अन्नउत्थियदेवयाणि वा अन्नउत्थियपरिग्गहियाणि वा अरिहंतचेइयाणि वा वंदित्तए वा नमंसित्तए वा पुवि अणालित्तेणं आलवित्तए वा संलवित्तए वा तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दाङ वा अणुप्पयाउं वा, खित्तओ णं इत्थ वा ... 28

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