Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 17
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ पडिबुज्झिस्संति इहं दट्ठण जिणिदबिंबमकलंकं / अन्ने वि भव्वसत्ता काहति तओ पवर भवणं // 630 // पिच्छिस्सं इत्थमहं वंदणगनिमितमागए साहू। कयपुन्ने भगवंते गुणरयणनिही महासत्ते // 631 // निप्फाइऊण एवं जिणभवणं सुंदरं तहिं बिंबं / जणमणनयणाणंदं लक्खणसंपन्नयं कुज्जा // 632 // अंगाहीणवयवाऽकराल अहउद्धवज्जिया दिट्ठी। समचउरंस सुरूवा सुनिम्मला लक्खणजुया य // 633 // निष्फन्नस्स य सम्मं तस्स पइट्ठावणे विही एसो। सुहजोएण पवेसो आययणे ठाणठवणा य . // 634 // एयं नाऊण जणा ! जिणिदबिंबस्स कुणह सुपइटुं। पावेह जेण जम्मणजरमरणविवज्जियं ठाणं . // 635 // अवहरइ रोगमारिं दुभिक्खं हणइ कुणइ सुहभावे। भावेण कीरमाणा सुपइट्ठा सयललोयस्स // 636 // राया बलेण वड्डइ जसेण धवलेइ सयलदिसिभाए। पुन्नं बंधइ विउलं सुपइट्ठा जस्स देसम्मि // 637 // निययविहवाणुरूवा पूआ गहिऊण संयणपरियरिओ। वच्चइ जिणिदभवणं परिहरियासेसघरकम्मो . // 638 // सव्वालंकारवसणाई परिहिय पवराइं छत्तचिंधाई। . . मुत्तुण सीहदुवारे पविसइ कयउत्तरासंगो . // 639 // विहिणा उ कीरमाणा सव्वा वि य फलवई हवइ चिट्ठा / इहलोइया वि किंपुण जिणपूआ उभयलोगहिया ? // 640 // काले सुइभूएणं विसिट्ठपुप्फाइएहिं विहिणा उ। . सारथुइथुत्तगरुई जिणपूआ होइ कायव्वा // 641 // . . 270

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