Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 17
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ दव्वाण सचित्ताणं विउसरणमच्चित्तदव्वपरिभोगो। मणएगत्तीकरणं अंजलिबंधो य दिट्ठीपहे // 666 // तह एगसाडएणं उत्तरसंगेण जिणहरपवेसो। पंचविहाभिगमोऽयं सच्चवइ जिजिंदगिहि गमणे // 667 // दाहिणपासम्मि ठिओ कुणइ नरो देववंदणं जुत्तो। नारी पुण वामकरम्मि संठिया वंदई देवे // 668 // तंबोल पाण भोअण वाणह थीभोग सुयण निट्ठवणे।। मुत्तुच्चारं जूयं वज्जे जिणमंदिरस्संतो . // 669 // सत्थावग्गह तिविहो उक्कोस जहन्न मज्झिमो नेओ। उक्कोस सट्ठी हत्थो जहन्न नव सेस मज्झिमओ // 670 // इरियावहि उस्सग्गे चिंतइ पणवीसमेव उस्सासे। लोगस्सुज्जोयगरं चंदेसु निम्मलयरं जाव // 671 // गमणागमण विहारे सुत्तम्मि य सुमिणदंसणे राओ / नावा नइसंतरणे इरियावहियापडिक्कमणं // 672 // भत्ते पाणे सयणासणे य अरहंतसमणसेज्जासु / उच्चारे पासवणे पणवीसं होंति उस्सासा // 673 // दो जाणू दुन्नि करा पंचमगं होइ उत्तमंगं तु / सम्मं संपणिवाओ नेओ पंचंगपणिवाओ // 674 // नवकारेण जहन्ना दंडगथुइजुयल मज्झिमा नेया। संपुण्णा उक्कोसा विहिणा खलु वंदणा तिविहा // 675 // तिविहावि हु नवभेआ, नवभेआ सा कहिस्सामि-नमुक्कारेणैकेन जघन्यजघन्या चैत्यवंदना 1 (शकस्तवेन जघन्यमध्यमा) नमस्कारेण शक्रस्तवप्रणिधानेन जघन्योत्तमा 3 इरियावहियानमस्कारशक्रस्तवप्रणिधानैर्मध्यमजघन्या 4 सैव अरिहंतचेइयाणं एकया स्तुत्या 282

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