Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 17
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ . // 768 // // 769 / / // 770 // // 771 // // 772 // गोमहिसुट्टिपसूणं एलग खीराणि पंच चत्तारि / दहिमाईयाइ जम्हा उट्टीणं ताणि नो होंति चत्तारि होति तिल्ला तिलअयसिकुसुंभसरिसवाणं च / विगईओ सेसाणं डोलाईणं निविगईओ दवगुड पिंडगुडा दो मज्जं पुण कट्ठपिट्ठनिप्फन्न / मच्छियकुंतियभामरभेयं च महुं तिहा होइ साहूणं रयणीए नवकारसहिय चउव्विहाहारं / भवचरिमं उववासो अंबिल तियचउव्विहाहारं सेसा पच्चक्खाणा दुह तिह चउहा वि होंति आहारे। अइ (इइ) पच्चक्खाणेसुं आहारविगप्पणा नेया अणहारो पस्सवणं छारोलिं चप्पभीणमूलाई। . पच्चक्खाणे वि कए रयणीए ताई कप्पंति फासियं१ पालियं२ चेव सोहियं३ तीरियं४ तहा।। किट्टिय५ माराहियं चेव६ जइज्जा एरिसम्मि उ उचिए काले विहिणा पत्तं जं फासियं तयं भणियं / तह पालियं च असई सम्मं उवओगपडियरियं गुरुदत्तसेसभोयणसेवयाए य सोहियं जाण / पुण्णे वि थेवकालावत्थाणा तीरियं होइ भोअणकाले अमुगं पच्चक्खायं तु भुंज कित्तिययं / आराहियं पयारेहि सम्ममेएहि निट्ठवियं वयभंगे गुरुदोसो थेवस्स वि पालणा गुणकरी य / गुरुलाघवं च नेयं धम्मम्मि अओ उ आगारा // 773 // // 774 / / // 775 // // 776 // // 777 // // 778 // .

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