Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 17
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 275
________________ पढमा पण पंचसया दो अद्धटु चउ तिसय छत्ताणं। बीओसरणे वीरेण दिक्खिया गुव्वरग्गामे // 484 // इत्थावसरम्मि जिणो चत्तारि कडे परूवए एवं।... सुंबकडे विदलकडे चम्मकडे कंबलकडे य // 485 // चिरसंसट्ठोऽसि चिरसंथुओ य चिरपरिचिओ चिरं झुसिओ। . चिरमणुगओऽसि योयम चिराणुवित्ती य मे होसि // 486 // केवलिकालो बारस वासा जाओ य गोयमपहुस्स। पच्छा अज्जसुहम्मस्स निक्खिवित्ता [गणं] गओ सिद्धिं // 487 // जाय केवलनाणं अज्जसुहम्मस्स अट्ठ वासाणि / सो वि य गणं ठवित्ता जंबूनामे गओ सिद्धि // 488 // जंबूसामी य तओ चउवालिस वच्छराणि पालित्ता। केवलनाणं पभवे गणं ठवित्ता गओ सिद्धि // 489 // सिद्धम्मि जंबुनामे केवलनाणस्स होइ वुच्छेओ। केवलनाणेण समं छिज्जइ मणपज्जवं नाणं . // 490 // मणपरमोहि पुलाए आहारग खवग उवसमे कप्पे। . संजमतिय केवलिसिज्झणाओ जंबुम्मि वुच्छिना // 491 // दुविहा अंतगडभूमिउति-जुगंतकरभूमी य परियाअंतकरभूमी य, तीर्थंकरस्य केवलिकालतः जाव तच्चाओ पुरिसजुगाओ जुगंतकरभूमी / चउवासपरियाए अंतमकासी / तत्रेदं तात्पर्यं-श्रीमहावीरतीर्थे त्रीन् पुरुषान् यावनिर्वाणमभूत्तद्यथा-भगवति निर्वृते गौतमो निर्वृतः ततः सुधर्मस्वामी ततो जंबूस्वामीति जुगांतरभूमिः / पर्यंतकरभूमिस्तु भगवतः केवलज्ञानोत्पत्तेरनतरं चत्वारि वर्षाणि यावन कश्चिन्निर्वृतः, केवलज्ञानोत्पत्तावपि पंचवर्षादारभ्य निर्वाणं गंतुमारब्धा भगवच्छिष्याः / पर्युषणकल्पे / 26

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