Book Title: Shasana Chatustrinshika
Author(s): Anantkirti, Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 8
________________ [ ह प्रह SEটঙ 1 ( जैनबिद्री ) के दक्षिण गोम्मटदेव पूर्वदिशा के पार्श्वजिनेश्वर, विश्वसेनद्वारा समुद्र से निकाले शान्ति जिन, उत्तर दिशाके जिनविस्त्र. सम्मेदशिखरके बोस तीर्थकर, पुष्पपुरके श्रीपुष्पदन्त, नागद्रहके नागहृदेश्वरजिन, सम्मेदशिखरकी अमृतचापिका. पश्चिमसमुद्रतटके श्रीचन्द्रप्रभजिन छायापाश्ववसु श्री आदिजिनेश्वर पावापुर के श्रीवीर जिन गिरनारके श्रीनेमिनाथ, चम्पापुरके श्रीवासुपूज्य, नर्मदा के जलसे अभिषिक्त श्रशान्तिजिनेश्वर, अवरोधनगर (आश्रम' या श्राशारम्य) के श्रीमुनिसुव्रतजिन, विपुलागिरिका जिनविस्त्र विन्ध्यगिरिके जिनचैत्यालय मेदपाट (मेवाड़) - देशस्थ नागफणी ग्राम के श्रीमल्लिजिनेश्वर और मालवा देश के महल श्रीअभिनन्दनजिन इन २६ के लोक-विश्रुत अतिशयोंका इसमें समुल्लेख हुआ है। इसके अलावा यह भी प्रतिपादन किया गया है कि स्मृतिपाठक, वेदान्ती, वैशेषिक, मायावी, योग, सांख्य, चार्वाक और बौद्ध इन दूसरे शासनोंद्वारा भी दिगम्बरशासन कई बातों में समाश्रित हुआ है । प्रस्तावना ১००६० इस तरह यह रचना जहाँ दिगम्बरशासन के प्रभावकी प्रकाशिका है वहाँ साथ में इतिहास- प्रेमियोंके लिये इतिहासानुसन्धानकी कितनी ही महत्वकी सामग्रीको लिये हुए है और इसलिये इसकी उपादेयता तथा उपयोगिता इस विषय की किसी भी दूसरी कृतिसे कम नहीं है । इसका एक-एक पद्य एक-एक स्वतन्त्र निबन्धका विषय है, इसीसे पाठक इसके महत्वको जान सकते हैं। १ उदयकीर्तिमुनिकृत अपभ्र शनिर्वाण भक्ति में आश्रम और प्रा० निर्वाणकाड गाथा २० में प्रशारम्यनगरका उल्लेख है ।

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