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शासन चतुर्विशिका
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प्राप्त हुए हैं। उनमें ६० पर तो समय भी अक्षित है। सबसे पुराना लेख वि. सं. १ का है और अर्वाचीन सं. १८७६ का है। यह भी हो सकता है कि पूज्यपाद और मदनकीर्तिने जिस विन्ध्यगिरिकी सूचना की है वह मैसूर प्रान्तके हासन जिलेके चेवरायपाटन तालुकेमें पायी जानेवाली विन्ध्यगिरि और चन्द्रगिरि नामकी दो सुन्दर पहाड़ियोंमेंसे पहली पहाड़ी विन्ध्यगिरि हो।यह पहाड़ी दोडबेट्ट' अर्थात् बड़ीपहाड़ीके नामसे प्रसिद्ध है । इसपर आठ जिनमन्दिर बने हुए हैं । गोम्मटेश्वरकी संसारप्रसिद्ध विशाल मूर्ति इसीपर उत्कीर्ण है जिसे चामुण्डरायने विक्रमकी ग्यारहवीं शताब्दी में निर्मित कराया था। अतएव इस प्रसिद्ध मूर्तिक कारण पर्वतपर और भी कितने ही जिनमन्दिर बनवाये गये होंगे और इसलिये उनका भी प्रस्तुत रचनामें उल्लेख सम्भव है। यह पहाड़ी अनेक साधु-महात्माओंकी तपःभूमि रही है । अतः विन्ध्यगिरि सिबतीर्थ तथा अतिशयतीर्थ दोनों है।
अतिशयतीर्थ अब मदनकीर्तिद्वारा उल्लिखित १८ अतिशयतीर्थो अथवा सातिशय जिनपिम्बोंका भी यहाँ कुछ परिचय दिया जाता है ।
श्रीपुर-पार्श्वनाथ. जैनसाहित्यमें श्रीपुरके श्रीपार्श्वनाथका बना माहात्म्य और अतिशय बतलाया गया है और उस स्थानको एक पवित्र तथा प्रसिद्ध अतिशयतीर्थक रूपमें उल्लेखित किया गया है। निर्वाणकाण्डमें जिन अतिशय-तीर्थोका उल्लेख है उनमें 'श्रीपुर का भी निर्देश है और
१ देखो, जैनशिलालेखसंग्रह प्रस्तावना पृ०२।