Book Title: Shasana Chatustrinshika
Author(s): Anantkirti, Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 57
________________ उन्हांसे भापक कमल ही मन उससे सटा अप्रतीत होता है । शासन-चतुस्लिंशिका eeeeeeeeeeeee यह चम्पापुर वर्तमानमें एक गौवके रूपमें मौजूद है और भागलपुरसे ६ मील की दूरीपर है। मदनकीर्तिके उल्लेखानुसार यहाँ १२वें तीर्थङ्कर वासुपूज्यकी अतिशयपूर्ण मूर्ति रही है जिसकी देवमनुष्यादि पुष्प-निचयसे बड़ी भक्ति पूजा करते थे। प्रतीत होता है कि चम्पापुरके पास जो मन्दारगिरि है उससे सदा हुआ एक तालाब है। इस तालाबके कमल ही मदनकीर्तिको पुष्पनिचय विवक्षित हुए हैंउन्हींसे भक्तजन उनकी पूजा करते होंगे। ७. विपुलगिरि राजगृहके निकट विपुलगिरि, वैभारगिरि, कुण्डलगिरि अथवा पाण्डुकगिरि, पिगिरि और बलाह ऋगिरि ये पाँच पहाड़ स्थित हैं। बौद्ध-ग्रन्थोंमें इनके वेपुल्ल, वेभार, पाण्डव, इसिगिलि और गिज्मकूद ये नाम पाये जाते हैं । इन पाँच पहाड़ोंका जैनप्रन्थोंमें विशेष महत्त्व वर्णित है । इनपर अनेक ऋषि-मुनियोंने तपश्चर्या कर मोक्ष -साधन किया है। आचार्य पूज्यपादने इन्हें सिद्धक्षेत्र बतलाया है और लिखा है कि इन पहाड़ोंसे अनेक साधुओंने कर्म-मल नाशकर सुगति प्राप्त की है । यथा द्रोणीमति प्रवरकुण्डल-मेटके च वैभारपर्वततले वरसिद्धकूटे । ऋष्याद्रिके च विपुलाद्रि-बलाहके च ये साधयो हतमलाः सुगति प्रयाता: स्थानानि तानि जगति प्रथितान्यभूषन् । –नि. भ. २६,३०।

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