Book Title: Shasana Chatustrinshika
Author(s): Anantkirti, Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 62
________________ ४२ ] ५कोणक-पुस्तकमाला Beeeeeeeeeeeeeeeee विद्वामाचार्य भी श्रीपुरके पार्श्वनाथकी महिमासे प्रभावित हुए हैं और उनका स्तवन करने में प्रवृत्त हुए हैं । अर्थात् श्रीपुरके पार्श्वनाथको लक्ष्यकर उन्होंने भक्तिपूर्ण 'श्रीपुरपार्श्वनाथस्तोत्र'की रचना की है । गङ्गनरेश श्रीपुरुषके द्वारा श्रीपुरके जैनमन्दिरके लिये दान दिये जानेका उल्लेख करनेवाला ई. सन ७७६ का एक ताम्रपत्र भी मिला है | इन सब बातोंसे श्रीपुरके पार्श्वनाथका ऐतिहासिक महत्व और प्रभाव स्पष्टतया जान पड़ता है। अब विचारणीय यह है कि यह श्रीपुर कहाँ है-उसका अवस्थान किस प्रान्तमें है ? मीजीका अनुमान है कि धारवाड़ जिलेका जो शिरूर गाँव है और जहाँसे शक सं. ७ का एक शिलालेख प्राप्त हुआ है तथा जो पाण्डयन ए. भाग १२ पृ. २१६में प्रकाशित हो चुका है वहीं प्रस्तुत श्रीपुर है । कुछ पाश्चात्य विद्वान् लेखोंने बेसिक जिलेके 'सिरपुर' स्थानको एक प्रसिद्ध जैनतीर्थ बतलाया है और वहाँ प्राचीन पार्श्वनाथका मन्दिर होनेकी सूचनाएँ की हैं। गङ्गनरेश श्रीपुरुष (ई.७७६) और प्राचार्य विद्यानन्द ई. ७७४-८४०)को इष्ट श्रीपुर ही प्रस्तुत श्रीपुर जान पड़ता है और जो मैसूर प्रान्तमें कहीं होना चाहिए, ऐसा भी हमारा अनुमान है। विद्वानोंको उसकी पूरी खोज करके उसकी ठीक स्थितिपर पूरा प्रकाश डालना चाहिये। १ देखो, जैनसि० भा० भा० ४ किरण ३ पृ० १५८ । २ देस्रो, जैनसाहित्य और इतिहास पृ. २३७ ।

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