Book Title: Shasana Chatustrinshika
Author(s): Anantkirti, Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 64
________________ ४४ ] ১০০ee होकर अरिष्टनेमिसे पूछा कि 'भगवन् ! मेरी यह सेना कैसे निरुपद्रव (रोगरहित) होगी और कैसे विजयश्री प्राप्त होगी। तब भगवान्ने अवधिज्ञानसे जानकर कहा कि 'भूगर्भ में नागजातिके देवद्वारा पूजित भाविजिन पार्श्वकी प्रतिमा स्थित है। यदि तुम उसकी पूजा-आराधना करो तो उससे तुम्हारी सारी सेना निरुपद्रव हो जायगी और विजयश्री भी मिलेगी ।" इस बातको सुनकर कृष्णने सात मास और तीन दिन तफ निराहार विधि नागेन्द्रकी उपासना की । नागेन्द्र प्रकट हुआ और उससे सबहुमान पार्श्वजिनेन्द्रकी प्रतिमा प्राप्त की। बड़े उत्सबके साथ उसकी अपने देवताके स्थान में स्थापनाकर त्रिकाल पूजा की उसके अभिषेकको सेनापर छिड़कते ही उसका यह सब श्वासरोगादि उपद्रव दूर होगया और सेना लड़नेके समर्थ हो गई । जरासन्ध और कृष्ण दोनोंका युद्ध हुआ, युद्धमें जरासन्ध हार गया और कृष्णको विजयश्री प्राप्त हुई । इसके बाद वह प्रतिमा समस्त faalat नाश करने और ऋद्धि-सिद्धियोंको पैदा करनेवाली हो गई। और उसे वहीं शङ्खपुर में स्थापित कर दिया । कालान्तर में वह प्रतिमा अन्तर्धान हो गई। फिर वह एक शङ्खकूपमें प्रकट हुई । वहाँ वह आज तक पूजी जाती है और लोगोंके विभादिको दूर करती है। यवन राजा भी उसकी महिमा (अतिशय ) का वर्णन करते हैं ।" मुनि शीलविजयजी ने भी तीर्थमाला में एक कथा दी है जिसका आशय यह है कि 'किसी यक्षने भावकोंसे कहा कि नौ दिन तक एक शखको फूलोंमें रक्खो और फिर दसवें दिन दर्शन करो। इसपर श्रावकोंने नो दिन ऐसा ही किया और नवें दिन ही उसे देख लिया और प्रकीर्णक पुस्तकमाला ०००००००० १ देखो, 'विविधतीर्थकल्प' पृ० ५२ । २ प्रेमीजी कृत 'जैन साहित्य और इतिहास' (४० २३७ ) से उद्धृत |

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