Book Title: Shasana Chatustrinshika
Author(s): Anantkirti, Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 72
________________ प्रकीर्णक-पुस्तकमाला అంంంంంంంంంంంంం नागद्रह-नागहृदेश्वर विविधतीर्थकल्पमें चौरासी तीर्थों के नामों को गिनाते हुए उसके कर्ता जिनप्रभसूरिने नागद्रह अथवा नागदमें श्रीनागहदेश्वर (पार्श्वनाथ) तीर्थका निर्देश किया है। । प्राक्कनिर्वाणाकाण्डकार तथा उदयकीर्तिने भी नागदहमें श्रीपार्श्वस्वयम्भुदेवकी वन्दना की है। इस तीर्थक उप. लब्ध उल्लेखोंमें मदनकीर्तिका उल्लेख प्राचीन है और कुछ सामान्य परिचयको भी लिये हुए है । इस परिचयमें उन्होंने लिखा है कि श्रीनागहदेश्वर जिन कोढ़ आदि अनेक प्रकार के रोगों तथा अनिष्टोको दूर करनेसे लोगोंके विशेष उपास्य थे और उनका यह अतिशय लोकमें प्रसिद्धिको प्राप्त था। इससे प्रकट है कि यह तीर्थ आजसे आठ सौ वर्ष पहलेका है । 'नागद्रह' नागदाका प्राचीन नाम मालूम होता है । जो हो। पश्चिमसमुद्रतटस्थ चन्द्रप्रभ __मदनकीर्तिने पश्चिम समुद्रतटके जिन चन्द्रप्रभ प्रभुका अतिशय एवं प्रभाव वर्णित किया है उनका स्थान कहाँ है ? उदयकीर्तिने उन्हें पश्चिम समुद्रपर स्थित तिलकापुरीमें बतलाया है । यह तिलकापुरी सम्भवतः सिन्ध और कच्छके आस-पास कहीं रही होगी । अपने समयमें यह तीर्थ काफी प्रसिद्ध रहा प्रतीत होता है। १ 'कलिकुपडे नागदे च श्रीपार्श्वनायः ।-विविधतीर्थकल्प पृ० ८६ । २ देखो, प्रा. नि. का. गाथा २० । ३ 'मायद्ह पासु सयंभुदेउ, हउं बंदउँ जसु गुण गास्थि छेव ।' ४ 'पच्छिमसमुहससि संख-श्यगु, तिलयापुरि चंदप्पहरषरगु ।'

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