Book Title: Shasana Chatustrinshika
Author(s): Anantkirti, Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 26
________________ ६ ] प्रकीर्णक पुस्तकमाला 3666 सतावन (५७) हाथ प्रमाण पाषाण के जिस महान् जिनत्रिम्बको कीर्ति नृपतिने बनवाया, जिसे बृहत्लुरमे 'बुदेव ( बड़े बाबा ) इस श्रेष्ठ नाम से सम्बोधित किया जाता है और लोगोंद्वारा यह भी कहा जाता है किं "यह श्रीमती आदिको निपिद्धिका (निसइसमाधिस्थान) है' वह बृहत्पुरके श्रीबृहद्द व दिगम्बर शासनकी रक्षा करें-- लोकमें उसे सदा बनाये रखें। 000000 रचयिताने इस श्लोक में बृहत्पुरके वृहद्देव की महिमा यह बतलाई है कि वह ५७ हाथकी विशाल प्रस्तर मूर्ति है, जिसे अर्क कीर्ति राजाने निर्मित कराया था और इस विशालता के कारण ही वह 'बृहद्देव' इस उत्तम संज्ञाको लोकमे प्राप्त हुई । श्रीमती श्रादिकी निषिद्धा भी लोगों द्वारा वही बतलाई जाती है ॥६॥ लौकैः पञ्चशती मितैरविरतं संहत्य निष्पादित यत्कक्षान्तरमेकमेव महिमा सोऽन्यस्य कस्याऽस्तु भो ! | यो देवैरतिपूज्यते प्रतिदिनं जेने पुरे साम्प्रतं दे दक्षिण गोम (म)टः स जयताद्दिग्वाससां शासनम् ॥७॥ + निरन्तर पाँचौ जनों / आदमियों ने मिलकर जिसका निर्माण fear और जिसका मध्यभाग केवल लताबेलों और सूखे घासादिसे युक्त है सो इस प्रकारकी महिमा और अन्य किसी है अर्थात सी महिमा और दूसरे किसीकी भी नहीं है तथा जिनकी देवोंद्वारा इस समय जैनपुर - जैनबिद्री में प्रतिदिन सविशेष पूजा की जाती है वह श्रीदक्षिण गोम्मटदेव दिगम्बरशासनकी जय करे - लोकमें वे उसे सदा स्थिर रखें। प्रतीत होता है कि जैनबिद्रीके दक्षिणगोम्मटदेवका निर्माण पाँचसौ लोगोंने किया था, जो उसके बनाने में एक साथ निरन्तर लगे

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