Book Title: Shasana Chatustrinshika
Author(s): Anantkirti, Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 30
________________ १०] प्रकीर्णक-पुस्तकमाला seeeeeeeeeee02 कुष्टाऽनिष्ट-बिनाशनो जनदृशां योऽलक्ष्यमूर्ति विभुः स श्रीनागहृदेश्वरो जिनपतिर्दिवासमां शासनम् ॥१३॥ द्विजनायक-नामण जिन्हें 'स्रष्टा', वैष्णव हरि (विष्णु), बौद्ध 'युद्ध' और माहेश्वरी-शैव 'शूली' बड़े हर्षपूर्वक बतलाते हैं तथा जो कुष्ट (कोढ़) और अनिष्टों (चिम्न-बाधाओं) को विनष्ट (दूर) करनेवाले हैं अथांत जिनके दर्शनादिमात्रसे कोढ़ाजनीका कोढ़ जैसे रोग और दर्शनाधी भव्योंके नाना अनिष्टोका सर्वथा नाश हो जाता है, और साधारण लोगोंके लिये जिनकी मूर्ति अलक्ष्य (अदृश्य) है वह श्रीनागदहतीर्थके नागहृदेश्वर (पार्श्व) जिनेन्द्रप्रभु दिगम्बर शासनका प्रभाव लोकमें खूब ख्यापित करें। नागद्रहतीर्थके श्रीनागजिन (पार्श्वनाथ) का यह माहात्म्य है कि उनके दर्शनादिसे कोड जैसे भबकर एवं असाध्य रोग तथा अनिष्ट दूर होजाते हैं और सामान्यजनों के लिये वे अदृश्य हैं । इस माहात्म्यके कारण प्रमुख बाझरण उन्हें 'सष्टा', वैष्णव, "विष्णु' बौद्ध 'बुद्ध' और शैव 'शुली' कहकर पुकारते हैं और इसमें उन्हें वड़ा प्रमोद होता है ॥१३॥ यस्याः पाथसि नामविशतिमिढ़ा पूजाऽष्टधा तिप्यते मन्त्रोच्चारण-बन्धुरेण युगपन्निग्रन्थरूपात्मनाम् । श्रीमत्तीर्थकृतां यथायथमियं संसंपनीपचते सम्मेदामतवापिकेयमवताहिग्वाससां शासनम् ॥१४॥ जिसके पवित्र जलमें निर्मन्थरूपके धारक श्रीतीर्थक्करों के एक साथ बीस नामोंसे सुन्दर मन्त्रों के उच्चारणपूर्वकज ल-चन्दनादि पाठ १ सन् । २ प्रति।

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