Book Title: Shasana Chatustrinshika
Author(s): Anantkirti, Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 36
________________ १६] प्रकीरणक-पुस्तकमाला eeeeeeeDEO :54:44 फरयोंके न्यूनाधिक पासों (कौरों-कबलों) को चुनते हुए समस्त कोको जल्दी नाश करनेके लिये असाधारण एवं घोर तप किया । अतः ज्ञात होता है कि उन्होंने भी दिगम्बरोंके शासनका महत्व जानकर उसका समाश्रय लिया ||२॥ जैनाभासमतं विधाय कुधिया यैरप्यदो मायया इस्त्रारम्भ-(ग)हाश्रयो हि विविधप्रासः स वासा(सां)पतिः । माण्डोदएखकरोऽर्च्यते स च पुनः निर्ग्रन्थलेशस्ततो युक्त्या तैरपि साधु भाषितमिदं दिग्वाससां शासनम् ॥२३॥ जिन्होंने भी दुर्बुद्धिसे माया (छल) द्वारा अमुक जैनाभासमत को उत्पन्न कर अल्प पारम्भ और गृहरूप अल्प परिग्रहका आश्रय लिया, तथा विविध प्रासोको पसंद किया और बस्रोके स्वामी बने एवं भाण्ड (पात्र) तथा उन्नत दण्डको हाथमें लेना मान्य किया और इन सबको निम्रन्थोश (निम्रन्थता-अपरिप्रह) बतलाया है उन्होंने भी युक्तिसे-एक तरीकेसे दिगम्बर शासनको साधु कहा है। अर्थात् उनके द्वारा भी दिगम्बर शासनकी महत्ता स्वीकार की गई है। प्रतीत होता है कि यहाँ रचयिताने श्वेताम्बर मतका उल्लेख किया है और बतलाया है कि उन्होंने भी अल्प पत्र, पात्र और दण्डको आंशिक निर्गन्यता बतलाकर उस (निम्रन्थता) के महत्वको मान्य किया है और इस तरह दिगम्बर शासनका प्रभाव उनपर भी प्रकट है ||२३|| नाऽभुक्तं किल कर्मजालमसकृत् संहन्यते जन्मिनां योगा इत्यवबुध्य भस्म-कलितं देह जटा-धारिणम् ।

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