Book Title: Shasana Chatustrinshika
Author(s): Anantkirti, Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 42
________________ २२ ] प्रकीर्णक-पुस्तकमाला ఇంఅంఅంఅంఅంది विधि अल्प भी त्याग करते हैं उनके लिये उतना भी कल्याणकारक होता है और इसलिये इस मोहका त्याग हरएका कल्याणकारी माना गया है। आम लोग भी इस बातको कहते हुए पाये जाते हैं कि "प्रारम्भ और परिग्रहकी झंझटसे मुक्ति पाना ही शिवपद है-मोक्ष है-निराकुलतारूप सुखकी प्राप्ति है।' इस प्रकार दुनिया निर्मथताको ही महत्व देती है और इसलिये दिगम्बर शासन पूर्णतः विजयी क्षमता रखता है ॥२६॥ सिक्ते सत्तरितोऽम्बुभिः शायरिया सम्मान देने परे सानन्द विपुलस्य शुद्धहदयैरित्येव भव्यैः स्थितः । निर्गन्धं परमहतो यदमलं बिम्बं दरीदश्यते यावद्वादशयोजनानि तदिदं दिग्याससां शामनम् ॥३०॥ निकटवर्ती नदीके पवित्र जलसे अभिषिक्त विपुलगिरिक श्रेष्ठ प्रदेशमें स्थित शुद्धहृदयवाले भोंद्वारा बड़े आनन्दसे पूजित होकर जो अरहन्तदेवका निर्गन्ध एवं निर्मल दिगम्बर जिनबिम्ब १२ योजन तक देखा जाता है सो यह दिगम्बरशासनका माहात्म्य है। विपुलाचलके सुन्दर प्रदेशमें जो आभूषणादिरहित दिगम्बर जैनमूर्ति स्थित है उसका यह अतिशय है कि वह १२ योजन तक दिसती है ॥३०॥ धर्माऽधर्म-शरीर-जन्य-जनक स्वर्गापवर्गादिके सर्वस्मिन् क्षणिके न कस्यचिदहो तद्वन्ध-मोक्ष-क्षणः । इत्याऽऽलोच्य सुनिर्मलेन मनसा तेनाऽपि यन्मन्यते बौद्धनात्मनिबन्धन हि तदिदं दिग्याससां शासनम ॥३॥

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