Book Title: Shasana Chatustrinshika
Author(s): Anantkirti, Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 32
________________ प्रकीर्णक पुस्तकमाला ०००००9690966666००० यस्य स्नानपयोऽनुलिप्तमखिलं कुष्टं दनीध्वस्यते सौवर्णस्तव केश (न) निर्मितमिव क्षेमङ्करं विग्रहम् । शक्तिविधायिनां शुभतमं चन्द्रप्रभः स प्रभुः तीरे पश्चिम सागरस्य जयतादिग्वाससां शासनम् ||१६|| १२ ] जिनके अभिषेकजल ( गन्धोदक) को शरीर में लगानेसे भक्तजनका समस्त कुष्ट नष्ट होजाता है और सम्पूर्ण शरीर सुवर्णमय सुन्दर गुच्छोंसे निर्मित हुए की तरह होजाता है तथा अत्यन्त शुभ (उत्तम) और क्षेमङ्कर ( कल्याणकारी) बन जाता है, वह पश्चिमसमुद्र तटपर प्रतिष्ठित श्रीचन्द्रप्रभप्रभु दिगम्बर शासनको जयवन्त करें । इस में पश्चिम समुद्रके तटपर स्थित श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्रका यह अतिशय एवं प्रभाव बतलाया गया है कि उनके अभिषेक जलको लगाने से समस्त कोट नाश होजाता है और शरीर सर्वाङ्ग सुन्दर तथा सुवर्णमय बन जाता है, यह उनकी भक्ति करनेवालों को प्रत्यक्ष फल मिलता है ||१६|| शुद्धे सिद्धशिलातले सुविमले कर्पूरागुरु- कुंकुमादिकुसुमैरभ्यर्चिते फुल्लत्कार - फणापति - स्फुटफटा-रनावली -भासुरः छायापार्श्व विभुः भ भाति जयलादिग्वाससां शासनम् ||१७|| पञ्चामृतस्नापिते सुन्दरैः । जो पंचामृत से अभिषिक्त, कपूर, धूप और केशरादिक सुन्दर पुष्पोंसे संपूजित, विमल और पवित्र सिद्धशिलातलपर शोभित हैं तथा १ प्रति । २ प्रति ।

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