________________
प्रकीर्णक-पुस्तकमाला 600000000000
(शार्दूलविक्रीडित) यहीपस्य शिखेव भाति भविनां नित्यं पुनः पर्वसु भूभृन्मूर्द्धनिवासिना मुपचितप्रीति प्रसन्नात्मनाम् । कैलासे जिन विम्यमुत्तमधमत्सौवरावरणे सुरा वन्य(न्द)न्तेऽद्य दिगम्बरं सदमलं दिग्बाससां शासनम् ।।१।।
कैलास पर्वतके उस सातिशय चमकीले सुवर्णमय उत्तम जिनबिम्बकी देवगण आज भी वन्दना करते हैं जो दीपककी शिखा (ज्योति) की तरह देदीप्यमान है, जिसे भव्यजन प्रतिदिन और पर्वोपर पूजाते हैं, और कैलास पर्वतपर रहनेवाले प्रसन्नात्माओंको प्रीति उत्पन्न करने वाला है तथा अमल-निदोष दिगम्बर शासनका प्रभावक है।
जैन पौराणिक अमुश्र ति है कि प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेयके पुत्र सम्राट भरतने कैलास पर्वतपर ७२ सुवर्णमय जिनमन्दिर बनवाये थे और जो लोकमें बहुत प्रसिद्ध तथा प्रभावशाली माने जाते थे एवं दिगम्बर जैन शासनके सातिशय प्रभावको प्रकट करने वाले थे। जान पड़ता है रचयिताने यहाँ उन्हीं जिनमन्दिरोंके अथवा और किसी समय निर्मित हुए ऋषभदेवके सातिशय जिनबिम्बका उल्लेख किया है।
पादाङ्गुष्ठनखप्रभासु भविनामाऽऽभान्ति पश्चाद्भवा यस्यात्मीयभवा जिनस्य पुरतः' स्वस्योपवास-प्रमाः । अद्याऽपि प्रतिभाति पोदनपुरे यो वन्द्य-वन्द्यः स वै देवो बाहुबली करोतु बलवद्दिग्नाससां शासनम् ||२||
जिनके पैरके अँगूठेकी नख कान्तियों में भव्य जीवोंको अपने आगे-पीछेके अनेक भव प्रतिभासित होते हैं और जो इतर लोकजनों के १ अप्रतः अमे भवाः आत्मीयभवाः अाभान्ति ।