Book Title: Shasana Chatustrinshika
Author(s): Anantkirti, Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 21
________________ * नमः स्याद्वादसताय * महाप्रामाणिकचूडामणि श्री मदन कीर्ति यतिपति विरचित शासन- चतुस्त्रिशिका [ हिन्दी अनुवाद सहित ] अनुष्टुप्) यस्यापवासाद्वालोयं ययौ सोपास्त्र ( अ ) यं स्मयं । शु (शो) त्यसौ यतिर्जेनम घुः श्रपूज्यसिद्धयः ' ॥ , यह श्लोक, जो अनुष्टुप वृत्त (छन्द) में है, अगले बत्तीस श्लोकोंके प्रथमाक्षरोंसे रचा गया है। इसका अर्थ यह है कि 'यह बाल( मदनकीर्ति) जिस पाप- गन्धसे मदको प्राप्त हुआ उसे वह यति (साधु) - इन्द्रियविजयी होकर नाश करनेमें उद्यत है और इसलिये श्री पूज्य - सिद्धियोंने उसे जैन - राग-द्व ेष-मद आदिका विजेता - कहा है ।" इस पर प्रकारान्तरसे यह प्रकट है कि इस शासनचतुस्त्रिशिका ( शासन - चौबीसी) के रचयिता एक विद्वान् जैन साधु हैं जो पहले किसी कारणवश अपने पदसे व्युत होगये और पीछे उपदेशादि मिलने अथवा अपनी गलतीका बोध होनेपर पुनः अपने पदपर आरूढ हो गये ज्ञात होते हैं। इसका कुछ विचार प्रस्तावना में किया गया है। १ (अमेंतन ) वृत्तानामाद्यक्षरै ( निर्मितः ) श्लोकोऽयम् । २ यः पापपानाशाय यते स यतिर्भवेत् । -- यशस्तिलक मा० ८, ६० ४४ ।

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