Book Title: Shaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Author(s): Mathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 5
________________ जैन साहित्यसभा-लखनऊके प्रकट हुए लेखोंपर श्रीमान जैनतकरनपं० माणिकचंदजी न्यायाचार्य मोरेना द्वारा लिखित . प्रस्तावना। . प्रिय महानुभावों! ___पहिले इसके कि मैं छह द्रव्यकी आवश्यकता व सिद्धि तथा जैन साहित्यकी महत्ताका दिग्दर्शन आपको कराऊं यह बतला देना उचित समझता हूं कि वन्दनीय व्र० शीतलप्रप्तादजी व लखनऊ जनताका लेख लिखानेका कार्य कितना प्रशंसनीय है । भारतमें लेख लिखकर राजा सेठ या पविजकमें भेनने की प्रथा कुछ नवीन नहीं है लेकिन यह प्रथा नितनी पहिले प्रतिष्ठाप्राप्त थी उतनी इस समय नहीं देखी जाती, चाहे तो इसमें लेखकोंका आलस्य ही कारण हो या राजा व सेठों की सुनने में अप्रियता, लेकिन मेरी धारणा तो यह है कि इस विषयमें कुछ कुछ दोनों ही तरफसे त्रुटि की गई है। ___ कुछ ही समय पहिले राना भोन, बादशाह अकबरकी सभामें यति हीराविजय, पं० कालिदास प्रभृति कितने ही विद्वान् प्रतिदिन शिक्षा पूर्ण नवीन२ श्लोक बनाकर लेनाते थे इसके उपलक्षमें बादशाह भी उन्हें बहुत आदरकी दृष्टि से देखते थे तथा उनके उत्साह वर्धनाथ बहुतसा इनाम भी देते थे। सव शिक्षित समाजको यह विदित होगा कि राजा भोजकी सभामें कितने ही विद्वान् रहते थे। एक विद्वान् प्रतिदिन रानाके यहां नवीन २ शोक बनाकर लाया करते थे लेकिन महाराज भोनकी सभामें इतने बुद्धिशाली भादमी थे कि वे जिन श्लोकको एकवार सुन लेते थे वह उन्हें कण्ठस्थ हो जाता था, दूसरे दो दफे तीन दफे आदि सुनने मात्रसे उसकी पूर्ण धारणा :ख लेने थे अतः प्रतिदिन नवीन पण्डित महाशय जो नवीन२ ३ोक बनाकर लाते थे सभ.के स्थायी अन्य पण्डित उसे उसी समय रानाको सुनाकर कहते थे कि महारान, यह प्राचीन शोक है नवीन नहीं ! एक दिन उन नवीन पण्डितने इस भावपूर्ण लोक बनाया कि महारानके पितामहसे मेरे पिताको इनाम दिया गया एक लक्ष रुपया महारानके खनाने में जमा है। इस प्रकारके नवीन श्लोकको सुनकर अन्य सभी पण्डित बहुत पशोपेशमें पड़े कि इनके इस श्लोकको प्राचीन ही बताना चाहिये या नवीन । नवीन बतलानेसे तो जवन श्लोकके बना. नेके कारण इनको एक लक्ष : रुपया इनामका मिल ही जायगा, और प्राचीन बताने से भी यह बात प्रमाणित हो जायगी कि इनका एक लक्ष रुपया राजकोष जमा है, इत्यादि कथाओंके सुननेसे यह विदित होता है कि पहिले श्लोक आदि लिखकर रानसभामें सुनानेका बहुत प्रचार था । अब भी कुंछ न्यूनताको लिए हुए यह प्रथा सनीवित है। ...

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