Book Title: Shaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Author(s): Mathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 4
________________ निवेदन। . हमारी भारतवर्षीय दिगंबर जैन महासभाका २६ वां वार्षिक अधिवेशन वीर सं० २४४८ ( ई० सन् १९२२ ) में लखनउमें श्रीमान् विद्यावारिधि दर्शन दिवाकर वेरिस्टर चंपतरायजीके सभापतित्वमें अतीव उत्साह व समारोहके साथ वसंतपंचमोके रथोत्सबके मौके पर हुआ था तब श्रीमान् जैनधर्मभूषण धर्मदिवाकर व० सीतलप्रसादनीकी प्रेरणासे, लखनऊ धर्मपरायण दि० जैन समाजने उस समय एक जैन साहित्यप्तभा करनेका व उसमें हमारे विद्वानोंके इस ग्रन्थमें वर्णित दो विषयोंपर इनामी लेख मंगाकर उत्तम लेखकोंको २००)का इनाम देनेकी योजना की थी जिससे षड़ व्यकी आवश्यकता व सिद्धि पर तीन तथा जैन साहित्य महत्वपर तीन ऐसे ६ लेख प्राप्त हुए थे जो वहांकी सभा में पढे गये थे तथा जिसकी परीक्षा श्रीमान् विद्वदर्य पं० माणिकचंदनी न्यायाचार्य (मोरेना) द्वारा हुई थी, वे सब लेख पूज्य व्र० सीतलप्रसादजोकी सूचनानुपार हमने हमारे "दिगंबर जैन" मासिक पत्रमें क्रमशः प्रकट कर दिये थे तथा इनको पुस्तकाकार भी प्रकंट करनेकी चारों ओरसे हमें सूचना मिली थीं इसलिये उन लेखोंका यह संग्रहीत ग्रन्थ प्रस्ट किया जाता . है । आशा है कि इसके प्रकाशनसे षड् द्रव्य व जैन साहित्यके विषयमें विशेष प्रधश . पड़ेगा तथा विद्यार्थियोंके लिये तो ये निबंध बहुत ही लाभदायक होंगे। दि जैन समाजके अद्वितीय विद्वान् श्रीमान् पं० माणिकचंद्रनी न्यायाचार्य (वर्तमानमें प्रधानाध्यापक, जंबू विद्यालय-सहारनपुर) ने इस ग्रंथपर विस्तृत प्रस्तावना भी लिख दी है . (जो " दिगम्बर जैन " वर्ष १६ अंक ६ में भी प्रकट होचुकी है ) जिसके लिये भापके . हम बड़े आभारी हैं। कागनकी अतीव महंगीके समयमें यह ग्रन्थ 'दिगंबर जैन' के साथ २ छपता गया था इसलिये इसमें काग़न हलके लगाये गये हैं जो हमें भी खटकता है। तथा अनेक कारणोंसे इसका प्रकाशन भी अतीव देरीसे होसका है इसके लिये पाठक हमें उलाहना न देंगे ऐसी उम्मेद है । . सूरत। निवेदकवीर सं० - २४५३ । मूलचन्द किसनदास कापड़िया, .. प्रकाशका आषाढ़ सुदी ११ ,


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