Book Title: Shadashitika
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 4
________________ २६० जैन धर्म और दर्शन है और वह इससे बहुत बड़ा है। यद्यपि चौथे कर्मग्रंथ के सब विषय प्रायः जीवकाण्ड में वर्णित हैं, तथापि दोनों की वर्णनशैली बहुत अंशों में भिन्न है। जीवकाण्ड में मुख्य बीस प्ररूपणाएँ हैं-१ गुणस्थान, १ जीवस्थान, १ पर्याप्ति, १ प्राण, १ संज्ञा, १४ मार्गणाएँ और १ उपयोग, कुल बीस । प्रत्येक प्ररूपणा का उसमें बहुत विस्तृत और विशद वर्णन है। अनेक स्थलों में चौथे ग्रंथ के साथ उसका मतभेद भी है। ___ इसमें संदेह नहीं कि चौथे कर्मग्रंथ के पाठियों के लिए जीवकाण्ड एक खास देखने की वस्तु है; क्योंकि इससे अनेक विशेष बातें मालूम हो सकती हैं । कर्मविषयक अनेक विशेष बातें जैसे श्वेताम्बरीय ग्रंथों में लभ्य हैं, वैसे ही अनेक विशेष बातें, दिगंबरीय ग्रंथों में भी लभ्य हैं । इस कारण दोनों संप्रदाय के विशेषजिज्ञासुत्रों को एक दूसरे के समान विषयक ग्रंथ अवश्य देखने चाहिए। इसी अभिप्राय से अनुवाद में उस-उस विषय का साम्य और वैषम्य दिखाने के लिए जगह-जगह गोम्मटसार के अनेक उपयुक्त स्थल उद्धत तथा निर्दिष्ट किये हैं। विषय-प्रवेश जिज्ञासु लोग जब तक किसी भी ग्रंथ के प्रतिपाद्य विषय का परिचय नहीं कर लेते तब तक उस ग्रंथ के लिए प्रवृत्ति नहीं करते। इस नियम के अनुसार प्रस्तुत ग्रंथ के अध्ययन के निमित्त योग्य अधिकारियों की प्रवृत्ति कराने के लिए यह आवश्यक है कि शुरू में प्रस्तुत ग्रंथ के विषय का परिचय कराया जाए। इसी को 'विषय-प्रवेश' कहते है। ' विषय का परिचय सामान्य और विशेष दो प्रकार से कराया जा सकता है । (क) ग्रंथ किस तात्पर्य से बनाया गया है, उसका मुख्य विषय क्या है और वह कितने विभागों में विभाजित है; प्रत्येक विभाग से संबन्ध रखनेवाले अन्य कितने-कितने और कौन-कौन विषय हैं; इत्यादि वर्णन करके ग्रंथ के शब्दात्मक कलेवर के साथ विषय-रूप आत्मा के संबन्ध का स्पष्टीकरण कर देना अर्थात् ग्रंथ का प्रधान और गौण विषय क्या-क्या है तथा वह किस-किस क्रम से वर्णित है, इसका निर्देश कर देना, यह विषय का सामान्य परिचय है । (ख) लक्षण द्वारा प्रत्येक विषय का स्वरूप बतलाना यह उसका विशेष परिचय है। प्रस्तुत ग्रंथ के विषय का विशेष परिचय तो उस-उस विषय के वर्णन-स्थान में यथासंभव मूल में किंवा विवेचन में करा दिया गया है । अतएव इस जगह विषय फा सामान्य परिचय कराना ही आवश्यक एवं उपयुक्त है। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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