Book Title: Shadashitika
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 38
________________ રહ૪ जैन धर्म और दर्शन योगजन्य विभूतियाँ योग से होनेवाली शान, मनोबल, वचनबल, शरीरबल श्रादि संबंधिनी अनेक विभूतियों का वर्णन पातञ्जलदर्शन में ' है। जैनशास्त्र में वैक्रियलब्धि, आहारकलब्धि, अवधिज्ञान, मनःपर्याय-ज्ञान आदि सिद्धियाँ २ वर्णित हैं, सो योग का ही फल हैं। बौद्ध मन्तव्य ___ बौद्धदर्शन में भी आत्मा की संसार, मोक्ष प्रादि अवस्थाएँ मानी हुई हैं। इसलिए उसमें आध्यात्मिक क्रमिक विकास का वर्णन होना स्वाभाविक है। स्वरूपोन्मुख होने की स्थिति से लेकर स्वरूप की पराकाष्ठा प्राप्त कर लेने तक की स्थिति का वर्णन बौद्ध-ग्रंथों में 3 है, जो पाँच विभागों में विभाजित है। इनके नाम इस प्रकार हैं-१. धर्मानुसारी, २. सोतापन्न, ३, सकदागामी, ४. अनागामी और ५. अरहा। [१] इनमें से 'धर्मानुसारी' या 'श्रद्धानुसारी' वह कहलाता है, जो निर्वाणमार्ग के अथांत् मोक्षमाग के अभिमुख हो, पर उसे प्रास न हुआ हो । इसी को जैनशात्र में 'मार्गानुसारी' कहा है और उसके पैंतीस गुण बतलाए है ४ । [२] मोक्षमाग' को प्राप्त किये हुए आत्माओं के विकास की न्यूनाधिकता के कारण सोतापन्न अादि चार विभाग हैं । जो आत्मा अविनिपात, धर्मनियत और सम्बोधिपरायण हो, उसको 'सोतापन्न' कहते हैं । सोतापन्न अात्मा सातवें जन्म में अवश्य निर्वाण पाता है । [३] 'सकदागामी' उसे कहते हैं, जो एक ही बार इस लोक में जन्म ग्रहण करके मोक्ष जानेवाला हो। [४] जो इस लोक में जन्म ग्रहण न करके ब्रह्म लोक से सीधे ही मोक्ष जानेवाला हो, वह 'अनागामी' कहलाता है। [५] जो.सम्पूर्ण आस्रवों का क्षय करके कृतकार्य हो जाता है, उसे 'अरहा' ५ कहते हैं । धर्मानुसारी आदि उक्त पाँच अवस्थाओं का वर्णन मज्झिमनिकाय में बहुत १ देखिए, तीसरा विभूतिपाद। २ देखिए, आवश्यक नियुक्ति, गा० ६६ और ७० । ३ देखिए, प्रो० सि० वि० राजवाड़े-सम्पादित मराठीभाषान्तरित मज्झिमनिकाय सू०६, पे० २, सू० २२, पे० १५, सू० ३४, पे० ४, सू० ४८ पे० १० । ४ देखिए, श्रीहेमचन्द्राचार्य-कृत योगशास्त्र, प्रकाश १ । ५ देखिए, प्रो. राजवाडे-संपादित मराठीभाषान्तरित दीघनिकाय, पृ. १७६ टिप्पणी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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