Book Title: Shadashitika Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf View full book textPage 1
________________ 'षडशीतिक' नाम प्रस्तुत प्रकरण का 'चौथा कर्मग्रन्थ' यह नाम प्रसिद्ध है, किन्तु इसका असली नाम षडशीतिक है । यह 'चौथा कर्मग्रन्थ' इसलिए कहा गया है कि छह कर्मग्रन्थों में इसका नम्बर चौथा है; और 'घडशीतिक' नाम इसलिए नियत है कि इसमें मूल गाथाएँ छियासी हैं । इसके सिवाय इस प्रकरण को 'सूक्ष्मार्थ विचार भी कहते हैं, सो इसलिए कि ग्रंथकार ने ग्रंथ के अंत में 'मुहुमत्थवियारो' शब्द का उल्लेख किया है। इस प्रकार देखने से यह स्पष्ट ही मालूम होता है' कि प्रस्तुत प्रकरण के उक्त तीनों नाम अन्वर्थ—सार्थक हैं। यद्यपि टबावाली प्रति जो श्रीयुत् भीमसी माणिक द्वारा निर्णयसागर प्रेस, बम्बई से प्रकाशित 'प्रकरण रत्नाकर चतुर्थ भाग' में छपी है, उसमें मूल गाथाओं की संख्या नवासी है, किन्तु वह प्रकाशक को भल है। क्योंकि उसमें जो तीन गाथाएँ दूसरे, तीसरे और चौथे नम्बर पर मूल रूप में छपी हैं, वे वस्तुतः मूल रूप नहीं हैं, किंतु प्रस्तुत प्रकरण की विषय-संग्रह गाथाएँ हैं। अर्थात् इस प्रकरण में मुख्य क्या-क्या विषय हैं और प्रत्येक मुख्य विषय से संबंध रखनेवाले अन्य कितने विषय हैं, इसका प्रदर्शन करनेवाली वे गाथाएँ हैं । अतएव ग्रंथकार ने उक्त तीन गाथाएँ स्वपोज्ञ टोका में उद्धृत की हैं, मूल रूप से नहीं ली है और न उन पर टीका की है। संगति पहले तीन कर्मग्रंथों के विषयों की संगति स्पष्ट है । अर्थात् पहले कर्मग्रंथ में मूल तथा उत्तर कर्म प्रकृतियों की संख्या और उनका विपाक वर्णन किया गया है । दूसरे कर्मग्रन्थ में प्रत्येक गुणस्थान को लेकर उसमें यथासंभव बंध, उदय, उदीरणा और सत्तागत उत्तर प्रकृतियों की संख्या बतलाई गई है और तीसरे कर्मग्रंथ में प्रत्येक मार्गणास्थान को लेकर उसमें यथासंभव गुणस्थानों के विषय में उत्तर कर्मप्रकृतियों का बंधस्वामित्व वर्णन किया है। तीसरे कर्मग्रंथ में मार्गणास्थानों में गुणस्थानों को लेकर बंधस्वामिस्व वर्णन किया है सही, किंतु मूल में कहीं भी यह विषय स्वतंत्र रूप से नहीं कहा गया है कि किस किस मार्गणास्थान में कितने-कितने और किन-किन गणास्थानों का सम्भव है । अतएव चतुर्थ कर्मग्रन्थ में इस विषय का प्रतिपादन किया है और उक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 ... 40