Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 22 Chandrapragyapti Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
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आगम (१७)
"चन्द्रप्रज्ञप्ति” – उपांगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:)
प्राभृत [१८], -------------------- प्राभृतप्राभृत , -------------------- मूलं [९६-९९] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: सूर्यप्रज्ञप्ति आधारेण मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१७],उपांगसूत्र-[६] "चन्द्रप्रज्ञप्ति मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [९६-९९]]
दीप
सूर्यप्रज्ञ-18/ देवीसाहस्सी परियारो पण्णत्तो, पभू णं तातो एगमेगा देवी अण्णाई चत्तारि २ देवीसहस्साई परिवारं१८ प्राभूते तिवृत्तिः विउवित्तए ?, एवामेव सपुवावरेणं सोलस देवीसहस्सा, सेत्तं तुडिए, ता पभू णं चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया-तारान्तरं (मल)
चंदवसिए विमाणे सभाए सुधम्माए तुडिएणं सद्धिं दिवाई भोगभोमाई भुंजमाणे विहरित्तए?, णो इणचन्द्रादिद
समटे, ता कहं ते णो पभू जोतिर्सिदे जोतिसराया चंदवडिंसए विमाणे सभाए सुधम्माए तुडिएणं सद्धिं ॥२६५||
९६-९७ दिवाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए ?, ता चंदस्स गं जोतिसिंदस्स जोतिसरपणो चंदवाडसए विमाणे| सभाए सुधम्माए माणवएस चेतियखंभेसु बहरामएसु गोलबहसमुग्गएसु पहवे जिणसकपा संणिक्खित्ता चिट्ठति, ताओ णं चंदस्स जोतिसिंदस्स जोइसरपणो अपणसिं च यहणं जोतिसियाणं देवाण य देवीण य अचणिज्जाओ वंदणिज्जाओ पूपणिज्जाओ सकारणिवाओ सम्माणणिज्जाओ कल्लाणं मंगलं देवयं चेतियं पजवासणिज्जाओ एवं खलु णो पभू चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया चंदवसिए विमाणे सभाए सुहम्माए तुहिएणं सहिं दिवाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए । पभू णं चंदे जोतिसिंदे जोतिसरापा चंदवडिसए विमाणे सभाए सुधम्माए चंदसि सीहासणंसि चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं चउहि अग्गमहिसीहि सपरिवाराही |तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अणिएहिं सत्तहिं अणियाहिवतीहिं सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अपणेहि ॥२६५॥ य बहहिं जोतिसिएहि देवेहिं देवीहि य सद्धिं संपरिबुडे महताहतणहगीयवाइयतंतीतलतालतुडियघणमुर-2 गपडुप्पवाइतरवेणं दिवाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए केवलं परियारणिडीए णो चेव णं मेहुणवत्तियाए।
अनुक्रम [१२९-१३२]
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