Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 22 Chandrapragyapti Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana

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Page 588
________________ आगम (१७) "चन्द्रप्रज्ञप्ति” – उपांगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) प्राभृत [२०], -------------------- प्राभृतप्राभृत ], -------------------- मूलं [१०५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: सूर्यप्रज्ञप्ति आधारेण मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१७],उपांगसूत्र-[६] "चन्द्रप्रज्ञप्ति मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१०५] 486860-56 ** दीप ताजपा राह देवे आगच्छमाणे वा० चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं आवरेत्ता पासेणं बीतीयतति तता गं मणुस्सलोअंमि मणुस्सा वदंति-चंदेण वा सूरेण वा राहुस्स कुच्छी भिण्णा, ना जता गं राह देवे आगच्छमाणे |R वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं आवरेत्ता पचोसकति तता गं मणुस्सलोए मणुस्सा एवं वदति-राहणा चंदे ।। मावा सूरे या वंते राहणा०२, ता जता रात देवे आगच्छमाणे वा० चंदस्स वा सूरस्स चा लेस आवरेत्ता मजन मोणं वीतिवतति तता णं मणुस्सलोयंसि मणुस्सा वदंति-राहुणा चंदे वा सूरे वा विइयरिए राहुणा०२,18 ता जता णं राहू देवे आगच्छमाणे० चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं आवरेत्ता णं अधे सपक्खिं सपडिदिसि चिट्ठति लता णं मणुस्सलोअंसि मणुस्सा वदंति-राहुणा चंदे वा० धत्थे राहणा० २॥ कतिविधे णं राहू पं०१, दुविहे पं० त०-ता धुषराहू य पवराहू य, तत्थ णं जे से धुवराह से णं बहुलपक्खस्स पाडिवए पण्णरसइ-18 भागेणं भागं चंदस्स लेसं आवरेमाणे चिट्ठति, तं०-पढमाए पढम भागं जाव पन्नरसम भार्ग, चरमे समए चंदे । रत्ते भवति अबसेसे समए चंदे र य विरत्ते य भवइ, तमेव मुक्तपक्खे उपदंसेमाणे २ चिट्ठति, तं०-पढ-12 |माए पदम भार्ग जाव चंदे विरते य भवइ, अवसेसे समए चंदे रत्ते विरते य भवति, तस्थ ण जे ते पवINराह से जहणणेणं छाई मासाणं, उकोसेणं यायालीसाए मासाणं चंदस्स अडतालीसाए संवच्छराणं सूरस्स (सूत्रं १०५)॥ 'ता कह 'इत्यादि, ता इति पूर्ववत्, कथं-केन प्रकारेण भगवान् ! त्वया राहुकर्म-राहुक्रिया आख्यातमिति %-6-56 अनुक्रम [१९९] : - FridaIMAPIVAHauWORK : ~588~

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