Book Title: Sarvagna Kathit Param Samayik Dharm Author(s): Kalapurnsuri Publisher: Prakrit Bharti Academy View full book textPage 6
________________ आमुख सामायिकं च मोक्षांगं, परं वासीचन्दनकल्पाना - मुक्तमेतन्महात्मनाम् Jain Educationa International - हरिभद्रीय अष्टक २६/१ सामायिक मोक्ष का प्रधान कारण है - यह सर्वज्ञ भगवन्तों का कथन है और उक्त सामायिक वासीचन्दनकल्प महात्माओं को होती है । वासीचन्दनकल्प अर्थात् वांसले के द्वारा कोई छेदन करे अर्थात् द्वेषभाव से कोई निन्दा, प्रहार अथवा अन्य प्रकार का उपद्रव करने पर अप्रसन्न न हो, और कोई चन्दन का विलेपन करे अर्थात् भक्ति, गुणगान अथवा अन्य किसी भी प्रकार से स्तुति, प्रशंसा अथवा सम्मान आदि करने पर प्रसन्न न हो; अर्थात् अनुकूल व्यवहार करने वाले व्यक्ति के प्रति राग नहीं रखे और प्रतिकूल व्यवहार करने वाले व्यक्ति के प्रति द्वेष न रखे । सर्वज्ञभाषितम् । वासचन्दनकल्प का दूसरा अर्थ यह है कि जिस प्रकार चन्दन अपने उपर प्रहार करने वाले वांसले को भी सुगन्ध ही प्रदान करता है, उसी प्रकार से महात्मा भी अपकार करने वाले व्यक्ति के साथ भी उपकार ही करते हैं । सामायिक में तीनों योगों की विशुद्धि होने से वह सर्वथा निरवद्य है, समस्त प्रकार के पापों से रहित है, तथा एकान्त कुशल आशय रूप है, तात्त्विक शुभ परिणाम रूप है । जिनागमों में सामायिक के संक्षिप्त तीन भेद बताये हैं (१) साम, (२) सम और (३) सम्म । ( 11211 ५ ) For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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