Book Title: Sarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Author(s): Kalapurnsuri
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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________________ - ALTRY प्रकाशककेबोल Sad इस युग के अशांत एवं ग्रन्थियुक्त जीवन में सामायिक धर्म का एक विशेष महत्व है । सामान्य भाषा में सामायिक का अर्थ समभाव से जीवन जीना है । परिस्थितियाँ अनुकूल हों या प्रतिकूल, पीड़ा हो या आनन्द, बिना विचलित हुए और संतुलित रूप से व्यक्ति अगर जीवन जीता है तो वह सामायिक की स्थिति में है। यह राग-द्वेष रहित जीवन है । जीवमात्र को अपनी स्वयं की आत्मा के समान मानकर उनके साथ आत्मतुल्य वृत्ति और व्यवहार रखना तथा उसमें उत्तरोत्तर विकास करना ही सामायिक धर्म की साधना है। जीवन में ऐसी सामायिक-समभाव आते ही प्रसन्नता एवं पवित्रता का वातावरण स्थापित होने लगता है, शान्ति एवं समता का अनुभव होने लगता है। सर्वज्ञ उपदिष्ट, सर्व-कल्याणकारी इस परम सामायिक धर्म का विशद स्वरूप क्या है ? उसकी अपार महिमा, उसके भेदोपभेद एवं प्रभेद, इसकी विश्व में व्यापकता, दुर्लभता एवं अनिवार्यता कितनी है ? उसके अधिकारी कौन हो सकते हैं ? आदि बिन्दुओं पर शास्त्रसापेक्ष सुन्दर भावयुक्त विवेचन इस पुस्तक में हुआ है, जिसके पठन-मनन से तत्वप्रेमी जीवों को साधना के मार्ग पर अग्रसर होने की अपूर्व प्रेरणा प्राप्त होगी और अपूर्व बल प्राप्त होगा। प्रस्तुत पुस्तक के संयोजक (लेखक) पूज्य आचार्य देव श्री विजयकलापूर्ण सूरिजी महाराज हैं, जो अनेक शास्त्रों के ज्ञाता एवं एक उत्तम कोटि के साधक, सन्त महात्मा हैं । आप ज्ञान, ध्यान एवं भगवद्-भक्ति में अह ( ३ ) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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