Book Title: Saral Manav Dharm Part 01 Author(s): Mahendra Sen Publisher: Shakun Prakashan Delhi View full book textPage 5
________________ दिया। आपके समान देशभक्त कहां मिलेगा ? जब भाग्य ही बुरा हो तो दुःख करना बेकार है। महाराणा प्रताप-बीर सैनिक ! अब मैं अपनी मात भमि पर यवनों का और अत्याचार नहीं देख सकता। इस लिए अव यहां से चले जाने के सिवा चारा भी क्या है ? चलो देर करना खतरे से खाली नहीं है। [महाराणा प्रताप और उन के साथियों ने चलने के लिए कदम उठाया ही था कि दूर से आते हुए भामाशाह दिखाई दिए] भामाशाह-(नेपथ्य से) हे मेवाड़-मुकुट । तनिक ठहरिए और मेरी एक प्रार्थना सुनने की कृपा कीजिए। महाराणा प्रताप-(रुक कर) अरे ये तो स्वयं भामा शाह पा रहे हैं ! जरा ठहरें। देखें वह क्या संदेश लाए हैं। (सभी साथी रुक जाते हैं) (महाराणा प्रताप के चरणों में प्रणाम करते हैं और महाराणा प्रताप उन को उठा कर गले से लगा लेते हैं) महाराणा प्रताप-मंत्रोवर, श्राप इतने व्याकुल क्यों राप की आंखों में आंसू क्यों ?Page Navigation
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