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उधार मांगना पड़े, यहां तक कि चोरी भी करनी पड़े, तो भी जुए के लिए कहीं न कहीं से पैसा जरूर लाता है। महाभारत में तुम ने पढ़ा ही होगा कि जया खेलने के कारण पांडवों की कैसी दुर्दशा हुई थी। इस व्यसन के कारण धर्मराज युधिष्ठिर जैसे बुद्धिमान आदमी की भी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी।
(२) मांसाहार-मांस, मछली और अण्डे खाने वालों का स्वभाव भी उन्हीं जानवरों जैसा हो जाता है जिन का वह मांस खाते हैं । मांस भक्षण करने वाली जातियां ही दुनिया में सब से ज्यादा कर होती हैं। ऐसे लोगों को हत्या, झूठ, चोरी आदि पाप करने में भी संकोच नहीं होता। मांस अप्राकृतिक भोजन है और इस के खाने से शरीर में अनेक रोग पैदा हो जाते हैं।
(३) भद्य (शराब या और कोई नशा)-अंगूर, महुए का रस, जौ का रस, इत्यादि वस्तुओं को बन्द कर के बहुत दिनों तक सड़ाया जाता है और जब उस में कीड़े पड़ जाते हैं तो उस को छान-छन कर शराब बनाई जाती है। इस के पीने वाला व्यक्ति मदमस्त हो जाता है, उस के मुंह से दुर्गन्ध पाने लगती है और उस को अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं रहता।
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