Book Title: Saral Manav Dharm Part 01
Author(s): Mahendra Sen
Publisher: Shakun Prakashan Delhi

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Page 61
________________ दे, झूठ बोले, हमारी चीज चुरा ले, हमें ठग ले, या हमें मारे तो हमें दुख होता है । उसी तरह ऐसे काम हम किसी दूसरे के लिए करेंगे तो उस को दुख होगा इस लिए हमें ऐसे कामों से बचना चाहिए। अपने व दूसरों के सुख के लिए हमें सदा अच्छी बातें सोचनी चाहिएं, अच्छे वचन बोलने चाहिएं और अच्छे काम करने चाहिएं । हिंसा श्रात्मा का गुण है और यह शूरवीर पुरुष का ग्राभूषण है । सब धर्मों में मुख्य होने के कारण ही "ग्रहिंसा परमो धर्मः" कहा गया है । संसार में रह कर हमारे द्वारा दूसरे जीवों की हत्या भी होनी अनिवार्य है इस लिए गृहस्थ हिता का पूर्ण त्याग नहीं कर सकता। घर के काम धन्धे, व्यापार, खेती आदि में छोटे जीवों की हत्या होती है । परन्तु जो ग्रादमी यत्न कर के कम से कम हिंसा करता है और जिस के मन में हिंसा करने की भावना नहीं होती वह ऐसी हत्या होने पर भी हिंसा के पाप का भागी नहीं होता । गृहस्थ ग्रपनी व दूसरों की रक्षा के लिए हथियार भी उठाते हैं, ग्रन्यायियों को दण्ड भी देते हैं तब भी उन को हिंसा का पाप नहीं लगता । स्थावर यानी एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा से तो 2.

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