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रहे भावना ऐसी मेरी, सरल सत्य व्यवहार कलं, . बने जहां तक इस जीवन में,औरों का उपकार कर ।।
सुखी रहें सब जीव जगत के, कोई कभी न घबराये, वैर भाव अभिमान छोड़ जग, नित्य नए मंगल गावे । घर-घर चर्चा रहे धर्म की, दुष्कृत दुष्कर हो जावें, ज्ञानचरित उन्नति कर अपना,मनुज जन्म फल सब पावें।।
ईति-भीति व्यापे नहिं जग में, वृष्टि समय पर हुया करे, धर्मनिष्ठ होकर राजा भी, न्याय प्रजा का किया करे। रोग, मरी दुभिक्ष न फैले, प्रजा शान्ति से जिया करे, परम अहिंसा धर्म जगत में, फैल सर्वहित किया करे ।।
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