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जो हम काम करते हैं उस से कर्म आत्मा में नहीं चिपकता। संसार के सभी प्राणी चौबीस घंटे कुछ न कुछ तो करते ही रहते हैं। जो स्वाभाविक काम हैं उन से जो कर्म बनते हैं, वे अपने आप ही जल्दी छूट जाते हैं, आत्मा में चिपकते नहीं।
आत्मा से कर्मों को चिपकाने वाले कषाय चार प्रकार के होते हैं : (१) क्रोध-शिक्षक या माता-पिता जब बच्चे
को उस की गलती ठीक करने के लिए डांटते हैं तव उस में क्रोध कषाय नहीं होती। परन्तु यदि तुम क्रोध में प्रा कर किसी से लड़ पड़ो, गाली-गलौच करो, या मार-पीट करो तो उस से कितना कष्ट तो उस को होगा जिस से तुम लड़ोगे और तुम को भी कितनी अशान्ति होगी। गुस्से में खून जलने लगता है, शरीर कांपने लगता है और घटना होने के बाद भी आदमी उसी बात को सोच-सोच कर जलता-भुनता रहता है। क्रोध से शरीर भी कमजोर होता है और मन भी खराब होता है। ऐसी अवस्था में किया गया कर्म आत्मा