Book Title: Saral Manav Dharm Part 01
Author(s): Mahendra Sen
Publisher: Shakun Prakashan Delhi

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Page 33
________________ वाय बनती है। ऐसे एकेन्द्रिय जीवों को स्थावर जीव भी कहते हैं। द्विइन्द्री जीव अर्थात जिन के स्पर्पण (छूने) और रसना अर्थात् जोभ भी होती है। ऐसे जीव मुंह से भोजन खाते या पीते हैं। जैसे लट, केंचुया, शंख, जौंक इत्यादि । (३) तीन-इन्द्री जीवों के स्पर्षण, रसना (जीभ) और नाक अर्थात संघने की शक्ति भी होती है । इन जीवों में चींटी, खटमल, जू इत्यादि की गिनती होती है। (४) चार-इन्द्री जीवों में स्पर्षण, रसना, ब्राण (संघने की शक्ति) के अतिरिक्त अांखें अर्थात् देखने की शक्ति भी होती है जैसे ततया, मच्छर, मक्खी, टिड्डी इत्यादि। (५) पांच-इन्द्री (पंचेन्द्रिय) जीवों के स्पर्षण, रसना, घ्राण, नयन और कर्ण (कान यानि सुनने की शक्ति) सभी होती हैं। अर्थात् पंचेन्द्रिय जीव सब तरह से पूरा जीव होता है। देवी-देवता, पुरुप-नारी, बैल-घोड़ा आदि जानवर ये सव पंचेन्द्रिय जीव हैं। यह पांचों प्रकार के जीव कर्मानुसार देह त्याग

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