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ग्रहों का अंग - विन्यास
जिस प्रकार द्वादश राशियां काल - पुरुष का अंग मानी गई हैं अर्थात् काल पुरुष के देह में राशियों का विन्यास किया गया है, वैसे ही ग्रहों का विन्यास भी किया जाता है प्रश्नकाल गोचर अथवा जन्म समय में जब ग्रह प्रतिकूल फलदाता होता है तो वह काल पुरुष के उसी अंग में अपने अशुभ फल के कारण पीड़ा पहुंचाता है ।
काल पुरुष के सिर और मुख पर ग्रहपति व सूर्य का हृदय और कंठ पर चन्द्रमा का पेट और पीठ पर मंगल का, हाथों और पांवों पर बुध का बस्ति पर गुरु का, गुह्य स्थान पर शुक्र का तथा जांघों पर शनि का अधिकार होता है। आत्मादि
काल पुरुष की आत्मा सूर्य और मन चन्द्रमा है। मंगल बल है तो बुध वाणी । बृहस्पति सुख और ज्ञान है शुक्र कामवासना है तो शनि दुःख है ज्योतिष में सूर्य चन्द्र को राजा, गुरु-शुक्र को मन्त्री, मंगल को सेनापति, बुध को युवराज, और शनि को भृत्य कहा है।
वर्ण (रंग)
सूर्य लाल-श्याम मिले-जुले रंगों का चन्द्रमा सफेद वर्ण का मंगल लाल वर्ण का. बुध दूब की भांति हरे रंग का बृहस्पति गौर-पीत रंग का शुक्र श्वेत रंग का, शनि काले रंग का, राहु नीले रंग का तथा केतु विचित्र वर्ण का है।
उपरोक्त कथन जातक के आत्मा व मन आदि के बारे में पता देता है। इनके कारक बलवान् होंगे तो ये भी पुष्ट होंगे और यदि कारक निर्बल अवस्था में होंगे तो ये भी निर्बल होंगे। वर्ण प्रश्न में नष्ट द्रव्यादि, चोर का रंग-रूप आदि तथा कुण्डली में जातक के रंग-रूप आदि का पता ग्रह के वर्ण से चलता है।
ग्रहों की दिशा
सूर्य पूर्व दिशा का शनि पश्चिम का बुध उत्तर का मंगल दक्षिण का शुक्र अग्नि कोण का राहु केतु नैर्ऋत्य का चन्द्रमा वायव्य का और गुरु ईशान दिशा का स्वामी है।
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