Book Title: Saral Jyotish
Author(s): Arunkumar Bansal
Publisher: Akhil Bhartiya Jyotish Samstha Sangh

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Page 119
________________ 27-28. Introduction to Yogas (Planetary Combinations) पाठ 27-28. योग परिचय योग का अर्थ है ग्रहों का आपस में सम्बन्ध ग्रह को दो प्रकार से जाना जाता है। जैसे, सूर्य, चन्द्रमा, मंगल आदि। दूसरे कुण्डली में भाव का स्वामी होने के कारण जैसे लग्नेश, द्वितीयेश, पंचमेश आदि। इसलिए योग भी दो प्रकार के होते है। 1. ग्रहों के आपसी सम्बन्ध के कारण जैसे युति, एक-दूसरे से 2/12 होना, केन्द्र या त्रिकोण में होना। इससे ग्रहों के फल में अन्तर पड़ता है। 2. भावाधिपति होना। जैसे केन्द्रेश तथा त्रिकोणेश का सम्बन्ध आदि हम इस अध्याय में ग्रहों की स्थिति के कारण होने वाले योगों का अध्ययन करेंगे। सूर्य से अन्य ग्रहों को स्थिति के कारण उत्पन्न होने वाले योग। 1. सूर्य से केन्द्र में चन्द्रमा स्थित हो तो जातक का धन, बुद्धि, चातुर्य आदि कम होता है। यदि चन्द्रमा पणफर में स्थित हो तो धन बुद्धि मध्यम होते हैं। यदि चन्द्रमा अपोक्लिम भाव में स्थित हो तो धन, बुद्धि चातुर्य श्रेष्ठ होता है। 2. वेसि योग चन्द्रमा को छोड़कर यदि सूर्य से दूसरे भाव में कोई अन्य ग्रह स्थित हो तो वेसि योग होता है। इस योग में उत्पन्न व्यति, खुश, समृद्ध, उदार तथा शासक वर्ग का प्रिय होगा। स्नेही बचन बोलने वाला, समदर्शी, लम्बे शरीर वाला होगा। 2. वासि योग चन्द्रमा को छोड़कर कोई अन्य ग्रह जब सूर्य से 12वें भाव में स्थित होगा तो वासि योग बनता है। इस योग में उत्पन्न व्यक्ति कुशल, दानवीर, विद्वान, बलवान होगा। (यह फल शुभ ग्रहों की स्थिति से बनते हैं) 3. उभयचारी योग चन्द्रमा को छोड़कर कोई अन्य ग्रह सूर्य के दूसरे तथा 12वें भाव में स्थित हो तो उभयचारी योग बनता है। 119

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