Book Title: Saral Jyotish
Author(s): Arunkumar Bansal
Publisher: Akhil Bhartiya Jyotish Samstha Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 125
________________ 29. The Transit of Planets पाठ- 29. गोचर विचार भारतीय ज्योतिष शास्त्र में जातक का फल उसकी जन्म कुण्डली में ग्रहों की स्थिति (योग) दशान्तर दशा तथा गोचर पर निर्भर करता है। फलित विचार में हमने योगों को पढ़ा गणित में हमने दशान्तर दशा को जाना तथा अब हम गोचर पर विचार करेंगे तीनों भागों को योग, दशान्तर दशा तथा गोचर का समग्र विचार करके ही फलित किया जा सकता है प्रत्येक भाग का अपना अपना महत्व है। योग का विचार प्रथम स्थान पर होता है। द्वितीय स्थान दशान्तर दशा का तथा तृतीय स्थान गोचर का होता है। जो योग नहीं दे सकता वह दशान्तर दशा तथा गोचर कितना ही शुभ हो, अनुकूल हो दे नहीं सकता। मानो कि जातक की कुण्डली में शादी का योग नहीं तो अनुकूल दशान्तर दशा व गोचर कभी भी शादी नहीं दे सकता। पहले शादी का योग होना चाहिये। फिर उसके अनुसार दशान्तर दशा होनी चाहिये। तीसरे गोचर के अनुकूल होते ही जातक की शादी होती है। मानो कमरे में पंखा चल रहा है। यह घटना कैसे हो रही है। यदि बिजली नहीं हो तो पंखा चलेगा। इसको हम यह भी कह सकते है कि प्रथम बिजली होनी चाहिये, द्वितीय पंखा होना चाहिये। तृतीय चालू व बन्द करने का बटन भी होना चाहिये। तब जाकर पंखा हवा करेगा, चलेगा। इसको यूं भी समझ सकते है मानो आपको पत्र मिला कैसे ? प्रथम आपके लिये पत्र लाकर आप तक पहुंचाएगा। यदि आपके लिये पत्र ही नहीं हो तो डाकखाना या डाकिया क्या कर सकता है। I इसलिए किसी भी घटना के लिये पहले योग होना चाहिये। फिर उसके अनुकूल दशान्तर दशा होनी चाहिये । तृतीय गोचर भी अनुकूल होना चाहिये तब जाकर जातक के जीवन में घटना होगी। अन्यथा नहीं। इस प्रकार हमें अच्छी प्रकार समझ लेना चाहिये। कि गोचर का स्थान तृतीय है । गोचर योग तथा दशान्तर पर निर्भर करता है। गोचर स्वयं में कोई फल नहीं दे सकता । 125

Loading...

Page Navigation
1 ... 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154