Book Title: Saral Jyotish
Author(s): Arunkumar Bansal
Publisher: Akhil Bhartiya Jyotish Samstha Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 141
________________ साढ़े साती फरवरी, 1958 में आरम्भ हुई। जब शनि कुम्भ राशि में गोचर कर रहा था उस समय गुरु/शुक्र। गुरु की दशा चल रही थी। शनि को भिन्न अष्टक वर्ग में दो बिन्दु प्राप्त है तथा समुदाय अष्टक वर्ग में 25 | चन्द्रमा के भिन्न अष्टक वर्ग में चार बिन्दु शनि को कुम्भ में प्राप्त है। कुम्भ में शनि मंगल से दृष्ट, कुम्भ लग्न से अष्टम भाव की राशि है तथा नवम भाव से द्वादश, सूर्य से चतुर्थ भाव में स्थित है तथा शनि दशम दृष्टि से सूर्य को देख रहा है। इस प्रकार दशा, कारक सूर्य, नवम भाव का स्वामी गुरु, सब शनि से पीड़ित है। इनके पिता की मृत्यु हो गई मई, 19641 परन्तु शनि कुम्भ में दशम भाव से एकादश भाव में था, चन्द्रमा से द्वितीय, अपनी मूलत्रिकोण राशि में स्थित था तथा चन्द्रमा के भिन्न अष्टक वर्ग में चार बिन्दु प्राप्त थे इसलिए जातक पहली बार लाल बहादुर शास्त्री की केबनेट में पहली बार मन्त्री बनी। इस प्रकार हम पाते हैं कि वही साढ़े साती पिता के लिए मृत्युकारक बनी तथा जातक के लिए पद प्राप्त कारक बनी। इस अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है कि साढ़े साती जन्म लग्न में स्थित ग्रहों से, चन्द्रमा के बल से, शनि की स्थिति से तथा दशान्तरदशा, अष्टक वर्ग में प्राप्त बिन्दुओं से प्रभावित होती है। बृहस्पति/शुक्र की दशा श्रीमती इन्दिरा गाँधी, दशम से नवम भाव में शुक्र बृहस्पति नवम भाव का स्वामी तथा वक्रीय और शुक्र की राशि में एकादश भाव में है इसलिए शनि की साढ़े साती पदोन्नति का कारण भी बनी। अर्धाष्टमशनि या ढैया- जब शनि चन्द्रमा से चतुर्थ भाव में जाता है तो चन्द्रमा को दशम दृष्टि से देखता है। उस समय पर भी चन्द्रमा शानि से पीड़ित होता है। परन्तु फल तो चन्द्र, शनि, लग्न, तारा, सप्तशलाखा, दशान्तरदशा पर निर्भर करता है। इसको कष्टक शनि भी कहते हैं। इसी प्रकार शनि जब जन्म चन्द्रमा से अष्टम भाव में गोचर करता है तो शुभाशुभ फल देता है। शुभाशुभ फल का निर्णय अष्टक वर्ग, तथा तारा, दशान्तर दशा ही करेगी। यदि सर्वाष्टक वर्ग में 28 से ज्यादा शुभ बिन्दु हो तो शनि का उस भाव में गोचर जातक को कष्ट न देकर आकस्मिक अच्छा 141

Loading...

Page Navigation
1 ... 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154