Book Title: Saral Jyotish
Author(s): Arunkumar Bansal
Publisher: Akhil Bhartiya Jyotish Samstha Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 148
________________ वर्ण गुण-बोधक चक्र शूद्र वर का वर्ण ब्राहमण क्षत्रिय ब्राह्मण 0 वैश्य 0 कन्या की वर्ण पर क्षत्रिय वैश्य ॐ शूद्र जिनकी कुण्डली का मिलान करना अभीष्ट हो, उनकी राशि ज्ञात करके वर्ण का ज्ञान कर लेना चाहिए। फिर इसे वर्ण गुण-बोधक चक्र में देख कर गुण लिख लेने चाहियें। मान लो कि चन्द्रकला और जगदीशचन्द्र का वर्ण गुण ज्ञात करना है। चन्द्रकला की मीन राशि और ब्राह्मण वण हैं, जगदीशचन्द्र की मकर राशि और वैश्य वर्ण है। कन्या के वर्ण के सामने तथा वर के वर्ण के नीचे गुण बोधक-चक्र में देखा तो गुण 0 मिला। वश्य ज्ञान मेष, वृष, सिंह व धनु का उत्तरार्ध और मकर राशि के पूर्वार्ध की वश्य संज्ञा 'चतुष्पद' कर्क राशि की वश्य संज्ञा 'कीट' , वृश्चिक की 'सर्प', मिथुन, कन्या, तुला तथा धनु के पूर्वार्ध की वश्य संज्ञा 'द्विपद' और कुम्भ, मीन तथा मकर राशि के उत्तरार्द्ध की वश्य संज्ञा 'जलचर' है। वश्य गुण-बोधक चक्र वर का वश्य चतुष्पद 2 कीट कन्या की नाड़ी चतुष्पद कीट सर्प द्विपद जलचर । 1 1 1/2 2 1 2 101 ___ 1 1 2 01 000 2 1 सर्प द्विपद जलचर 148

Loading...

Page Navigation
1 ... 146 147 148 149 150 151 152 153 154