Book Title: Saral Jyotish
Author(s): Arunkumar Bansal
Publisher: Akhil Bhartiya Jyotish Samstha Sangh

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Page 147
________________ की मेलापक विधि पर विचार करते हैं ज्योतिष में भार्याहन्ता या भर्ताहन्ता आदि योग आते हैं। उनके साथ-साथ पति-पत्नी दोनों की कुण्डलियों में सौभाग्य का भी विचार करना आवश्यक रहता है। जैसे सप्तम भाव में शुभ ग्रह हों, सप्तमेश शुभ ग्रह हो, शुभ ग्रह से युत या दृष्ट हो तो सौभाग्य को बढ़ाता है । अष्टम में पाप ग्रह का होना, अष्टमेश का पाप ग्रह होना या पाप ग्रह से युत या दृष्ट होना सौभाग्य का नाश करता है । मेलापक करते समय आगे लिखे गये नियमों का पालन कर लेना श्रेयस्कर रहता है । वर के सप्तमेश की राशि कन्या की जन्म राशि हो, वर के सप्तमेश की उच्च राशि कन्या की नाम राशि हो, वर के शुक्र की राशि कन्या की राशि हो, वर के लग्न की जो सप्तमांश राशि हो वही कन्या की जन्म राशि हो, वर के लग्नेश की राशि (जिस स्थान में वर का लग्नेश स्थित है) कन्या की नाम राशि हो तो दाम्पत्य जीवन सुखमय रहता है वर और कन्या की राशियों तथा लग्नेशों के तत्त्वों की मित्रता - शत्रुता का भी विचार कर लेना चाहिए । प्रेम मन से किया जात है, देह से नहीं, यह सर्वविदित है । ज्योतिष में देह लग्न है तो मन चन्द्रमा है। इसलिए इस प्रेम-सम्बन्ध अर्थात् विवाह के बारे में विचार करने के लिए शास्त्रकारों ने चन्द्र राशि को प्रधानता दी है । मेलापक में भावी पति-पत्नी के वर्ण, वश्य, तारा, योनि, गृह, मैत्री, गण मैत्री, भकूट और नाड़ी का विचार किया जाता है। इनके 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, क्रमशः गुण माने जाते हैं। कुल 36 गुण होते हैं कम से कम दोनों के 18 गुण मिल जाएं तो विवाह किया जाता सकता है, लेकिन नाड़ी और भकूट के गुण अवश्य ही सम्मलित रहने चाहिए। इन दोनों के गुणों के बिना यदि 18 गुण मिले तो विवाह सुख-सौभाग्यदायक नहीं माना जाता । वर्ण ज्ञान | राशि परिचय में वर्ण दे दिए गए हैं, यहां पुनः लिखे जाते हैं कर्क, वृश्चिक व मीन ब्राह्मण वर्णी, मेष, सिंह व धनु क्षत्रियवर्णी वृष, कन्या और मकर वैश्यवर्णी तथा मिथुन तुला और कुम्भ शूद्रवर्णी राशियां हैं। 147

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